
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में बीएमओ स्थानांतरण विवाद: 4 दिन में आदेश निरस्त, भाजपा की छवि को झटका
सारंगढ़-बिलाईगढ़। जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और राजनीतिक हस्तक्षेप एक बार फिर चर्चा में है। चार दिन पहले स्थानांतरित किए गए दो बीएमओ (ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर) को पुनः उन्हीं पदों पर बहाल कर दिए जाने से न केवल भाजपा की छवि को धक्का पहुंचा है, बल्कि आम जनता के मन में भी यह सवाल उठ रहा है कि क्या कुछ रूपयों और रसूख के दम पर ट्रांसफर आदेश पलटे जा सकते हैं?
चार दिन में ही बदला आदेश, जनता में आक्रोश
जिन चिकित्सकों का स्थानांतरण हुआ था, वे सरकारी अस्पताल में समय न देकर अपने निजी क्लीनिक पर अधिक ध्यान दे रहे थे। उनके खिलाफ लापरवाही और अनियमितता की शिकायतें लंबे समय से चल रही थीं। प्रशासन ने जब इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उनका स्थानांतरण किया, तब जनता ने राहत की सांस ली। लेकिन महज चार दिन के भीतर ही आदेश को रद्द कर देना, अब जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा नेताओं पर लगे गंभीर आरोप
सूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले में कुछ भाजपा नेताओं ने निजी स्वार्थ और संबंधों के चलते दखल दिया। वर्षों से पदों पर जमे हुए इन बीएमओ को बचाने के लिए कथित तौर पर भाजपा के बड़े नेताओं ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया, जिससे स्वास्थ्य मंत्री और शासन स्तर पर दबाव बना। यह हस्तक्षेप न सिर्फ प्रशासनिक स्वायत्तता को ठेस पहुंचाता है बल्कि पार्टी की विकास नीति पर भी सवाल खड़े करता है।
मुख्यमंत्री की छवि पर असर
प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। लेकिन भाजपा के कुछ नेता अगर ऐसे फैसलों में राजनीति करने लगें तो इससे खुद मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि भी प्रभावित हो रही है। जनता में यह संदेश जा रहा है कि भाजपा की कथनी और करनी में फर्क है।
कांग्रेस ने बनाया बड़ा मुद्दा
इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस ने भाजपा सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी भाजपा नेता भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद में लिप्त हैं। कांग्रेस ने इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है और आंदोलन की चेतावनी भी दी है। इस मामले में एनसयुआई के नेंताओं ने कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा है।
भाजयुमो भी दे सकता है ज्ञापन
मामले की गंभीरता को देखते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) से जुड़े कार्यकर्ता भी ज्ञापन सौंपने की तैयारी में हैं। अंदरखाने में भाजयुमो में भी इस तरह की सिफारिशी बहाली को लेकर नाराज़गी है, जिसे पार्टी के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। आज नही तो कल इस मामले में भाजयुमो के नेता भी उग्र रूप दिखा सकते हैं।
क्या जिलाध्यक्ष ज्योति पटेल लेंगे संज्ञान?
भाजपा जिलाध्यक्ष ज्योति पटेल की चुप्पी भी लोगों को अखर रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या वे इस संवेदनशील और जनता से जुड़े मुद्दे पर कोई ठोस पहल करेंगे या राजनीतिक दबाव में यूं ही तमाशबीन बने रहेंगे। ज्योति लाल पटेल को संगठन ने जिलाध्यक्ष की जिम्मदोरी इसलिए सौंपी है कि वह सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले में संगठन के साथ साथ सही और गलत फैसलों पर भी नजर रखें व उचित कार्यवाही करें लेकिन महज चार दिन के भीतर जिस प्रकार से स्थानांतरण निरस्त हो जा रहा है और जिलाध्यक्ष चुप है उसके कारण भाजपा के दर्जनों कार्यकर्ताओं में भी रोष देखने को मिल रहा है। चार दिन में ट्रांसफर रद्द होने की यह घटना भाजपा के संगठनात्मक अनुशासन, शासन की पारदर्शिता और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तीनों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाती है। यदि पार्टी ने समय रहते संज्ञान नहीं लिया, तो 2027 के चुनाव में जनता इस चिकित्सकीय राजनीति का हिसाब जरूर मांगेगी।