सूदखोरी में दस गुना का खेल… मामला थाने के चौखट तक!
अंचल मे सूदखोरी के लिये तत्काल फायनेंस की व्यवस्था हो जाती है। विशेषकर जब देखा जाता है कि
फायनेंस लेने वाला पैसा को सट्टा और जुआ में लगा रहा है तो उसको पैसे तत्काल प्रदान करने वालो
की संख्या दर्जन भर से अधिक हो जाती है। किन्तु इस फायनेंस के दर की बात सुनकर ही पैरो तले
जमीन खिसक जाती है। बताया जा रहा है कि एक व्यावसायी का पुत्र इस आईपीएल के भंवरजाल में इस
तरह से फंसा है कि मूल धन से 10 गुना ज्यादा पैसा भुगतान करने के बाद भी आज तक मूल और
ब्याज उतना ही बाकि है जितना पहले बाकि था। भुगतान के लिये चक्कलस होने के बाद अब मामला
जान देने पर आ गया और फिनायल का सेवन की खबरे भी छनकर सामने आ रही है। अब मामला
सत्ताधारी के रिश्तेदारी के पास पहुंचा तो फोन घुमा दिया गया खाखीवर्दी के बड़े साहब को और पैसा के
लिये तंग करने वालो के खिलाफ शिकवा-शिकायत पहुंच गया पुलिस की चौखट तक.. अब बयान-कथन
में पैसा फायनेंस करने वालो की लंबी-चौड़ी सूची में भी जो नाम थे उनका बयान लिया जा चुका है और
मामला स्पष्ट हो गया कि बड़ा गोल-माल है… ऐसे में अब आने वाले दिनो में सटोरिया और उधारी और
ब्याज-सूद का बड़ा खेल पर बड़ा खुलासा हो सकता है….।
शिकवा-शिकायत पर कागजी घोड़ा दौड़ रहा जिला सारंगढ़ में?
मुख्यमंत्री जनदर्शन और पीजीएन के साथ-साथ विभिन्न विभागों में इन दिनो बड़ी संख्या में पत्र जिला
प्रशासन के पास आ रहे है। इन आफलाईन पत्रो में मांग और निमार्ण और विकास के स्थान पर सिर्फ
शिकायत और अवैध कार्यो पर कार्यवाही का ही संख्या 90 फीसदी से अधिक है। आफिस-आफिस के तर्ज
पर एक सरकारी टेबल से दूसरे सरकारी टेबल तक घुम रहे ऐसे पत्रो पर कार्यवाही के नाम पर खाली
कागजी घोड़ा दौड़ाने का ही काम अभी नये जिले मे हो रहा है। अवैध काम करने वालो के खिलाफ सिर्फ
यहा पर कागजी घोड़ा दौड़ा दिया जा रहा है विशेषकर जिन पत्रो पर मंत्री जी कार्यवाही के लिये लिखे है
उन पत्रो पर बाबू ज्यादा हावी दिख रहे है। ऐसे में नया जिला में सरकारी कार्य सिर्फ औपचारिकता
निभाने तक सिमित हो गया है। वैसे कार्यवाही के नाम पर शून्य हो चुका नया जिला में सत्ताधारी दल
वालो के भी बड़े-बड़े लोगो के पत्र को आफिस-आफिस खेलकर सुस्त अवस्था में लाने मे सरकारी करिंदे
भी अहम भूमिका में आ चुके है।
डीएमएफ का जिन्न भी बाहर आने तड़प रहा…
गौण खनिज का जिन्न सूची लेकर बाहर आ गया और किन-किन गांवो में निमार्ण का प्रस्ताव और इस
प्रस्ताव के पीछे के कहानी को साथ लेकर बाहर आया है। वही अब डीएफएफ का भी जिन्न बाहर
निकलने वाला है। यहा पर 10 लाख रूपये का ओपन जिम की बात हो या बात अन्य भवन और एक
सरकारी स्कूल में किया गया खर्च हो। डीएमएफ का जिन्न बाहर आयेगा तो तहलका तो मचायेगा। अब
जिला बने दो साल और उसके पहले के तीन साल में डीएमएफ के नाम पर जो बंदरबॉट हुआ है उसका
हिसाब-किताब तो होकर रहेगा। ऐसे में धान खरीदी का बड़ा खेल के बाद गौण खनिज का हिसाब-किताब
और अब डीएमएफ का जिन्न का बाहर आने का संकेत देने भर से ही कई बड़े चेहरो के चेहरे पर से
रौनक गायब हो जा रही है। देखते है कि डीएमएफ में बड़ा खिलाड़ी कौन है जो चुपचाप मलाई खाकर
डकार भी नही ले रहा है।
“सेवा विभाग” हटाकर “कमीशन विभाग” नाम रख दे…
अंचल में एक महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय के नाम के पीछे में सेवा विभाग लिखा हुआ है। बरसो पहले
उनके एक बड़े अधिकारी ने पत्रकारो के साथ चर्चा करते हुए कहा था कि बाकि सब सिर्फ सरकारी विभाग
है और हम सरकारी सेवा विभाग है यानि हम पब्लिक का सेवा करते है। किन्तु इस सेवा के बदले मे
अभी पदस्थ मैड़म जो मेवा खा रही है उससे इस विभाग में सेवा नाम को हटाकर कमीशन विभाग ही
रख देना चाहिये। दरअसल में नया जिला बनने के बाद इस विभाग का जिला कार्यालय अभी पुराने जिले
में ही है इस कारण से अभी भी इस विभाग पर कसावट नही आ पाई है वही यहा पर कार्यरत मैडम को
सिर्फ काम के बदले भुगतान और उसके बदले मिलने वाले कमीशन से ही मतलब है इस कारण से कई
ऐसे-ऐसे प्रस्ताव को टीएस कर दिया जा रहा है जिसको मौके पर देखना अनिवार्य था किन्तु आफिस में
ही बैठकर फाईल को तकनिकी स्वीकृति प्रदान कर दिया जा रहा है। स्तरहीन और गुणवत्ताविहीन निमार्ण
कार्यो के लिये मजबूत मूल्यांकन रिर्पोट का बड़ा खेल यहा पर प्रतिदिन खेला जा रहा है और हर दिन
बड़ी मोटी रकम कमीशन के रूप मे मैडम एकत्रित कर रही है। ऐसे मे सेवा विभाग का मेवा खाने वाले
इस विभाग में आने वाले दिनो मे क्या-क्या खुलासा होगा, वह देखने वाली बात होगी।