जिला- सारंगढ़ बिलाईगढ़नया कॉलमपूछता है सारंगढ

तीसरी आंख की पैनी नजर….

तीसरी आंख की पैनी नजर….

तीसरी आंख की पैनी नजर….

भांचा को निपटाते-निपटाते मामा की टीम निपट गयो..?
मामा-भांचा की यह कहानी राजनितिक वाले मामा-भांचा से थोड़ा अलग है। हुआ यूं कि इस स्थान पर
मामा-भांचा, जीजा-साला, दामाद-ससुर सब एक थे। पांच साल तक सभी ने मजे करके मलाई-रबड़ी सब
खाया किन्तु अचानक से मामा का भांचा दोषमुक्त हो गया। जो भांचा अब तक अपना था वह दोषमुक्त
होने के बाद बड़ा पद लेने के लिये भगवा वालो के पास पहुंच गया और राजधानी मे सोर्स लगाकर बड़ा
पद ले आया। अब इस भांजा को निपटाकर अपने दामाद की कुर्सी की रक्षा करने के लिये मामा ने सुसर
वाला रोल निभाया और भांचा को निपटाने के लिये एक से बढ़कर एक तीर चलाये। अब भांचा भी कम
शातिर नही था मामा और मामा की टोली का एक-एक काला कारनामा से भांचा वाकिफ था। ऐसे में
दामाद की कुर्सी को बचाने के लिये हाथ-पांव मारने वाले मामा और उसके टीम को भांचा ने ऐसा फंसाया
कि दीदी ही भाई का दुश्मन हो गया और पूरा मामला उस जगह पर सवाल के रूप मे सामने आ गया
जहा पर से बचना मुश्किल है। अब पूरी निगाहे जीजा की ओर है कि जीजा नैया पार लगायेगें… लेकिन
जीजा तो दाग ना लगे इस कारण से दूर-दूर रहते है… ऐसे मे एक अकेला भांचा ने मामा की टोली को
नाको चने चबा दिये… चलिये आगे देखते है कि मामा-भांचा का यह युद्ध और आगे क्या-क्या पोल
खोलता है..।

 

एक करोड़ का फोटो.. और एक करोड़ का टेंट…?
फंड़ आने के बाद सबसे पहले उस फंड़ को किस मद मे खर्च करके ज्यादा से ज्यादा की कमाई करने का
फार्मूला नये जिले मे खोजना पड़ रहा है। पहले पुराने जिले में घाघ-घाघ बाबू बैठे रहते थे तो सभी
आईड़िया उनके दिमाग में पहले से रहता था किन्तु नया जिला मे पहली बार आयोग ने बड़ा-बड़ा एड़वांस
भेज दिया तो दिमाग मे दही जम गया। अब एड़वांस मे आया भारी-भरकम राशी को खत्म करने के लिये
कई प्रकार का दिमाग लगाया गया और तय किया गया कि फोटो खीचने और टेंट लगाने का काम को
संख्या में बढ़ा दिया जाये और दर मे बढ़ा दिया जाये तो बिल बड़ा हो जायेगा। इस फामूर्ला को फिट
करने पर ज्ञात हुआ कि फोटो खीचने का एक करोड़ का और टेंट का भी एक करोड़ का बन रहा है। अब
मामला फिफ्टी-फिफ्टी का होने के कारण से बिल देने वालो को भी जीएसटी का झटका नही लग रहा है।
बड़ी आसानी से अभी बिल व्हाऊचर पेश किया जा रहा है। चलिये देखते है कि फंड़ बाकि रह गया तो
फोटो और टेंट का बिल बढ़ते-बढ़ते कितना तक चला जायेगा…।

 

यहा नये मुखिया के लिये नूरा-कुश्ती शुरू !
ऐलान हो गया कि सत्ताधारी दल के लिये नये मुखिया का जल्द की चयन होगा तो यहा पर एक साथ
दिखने वालो के बीच नूरा-कुश्ती का दौर शुरू हो गया। वर्तमान वाले का भीष्म पितामह को दिल्ली भेज
दिया गया तो उनको समझ में आ गया कि उनका पत्ता अब नही चलना है इस कारण से वर्तमान वाले
रोलिंग मिल के काम धंधा में अपने-आपको समेट लिये है। वही अब इस कुर्सी पर बैठेगा कौन? इस
सवाल का जवाब तो नूरा-कुश्ती के रिजल्ट में सामने आयेगा। जिले की सियासी तासीर को जानने वाले
कहते है कि फ्रेश और युवा चेहरे को चांस मिलेगा.. वही एक महान से मंत्री जी अपना फायनल मानकार
अभी सभी की लिस्ट बनाने में कमाई कर रहे है। सत्ता होने और अपने दल के एमएलए नही होने पर
सत्ताधारी दल के मुखिया का पावर काफी रहता है और इस पावर सें आर्थिक संपन्नता और राजनितिक
ऊंचाई भी पाया जा सकता है। इस कारण से विरोधी को हर मोर्चे पर परास्त करने का खेल अभी नये
जिले मे जारी है। देखना यही होगा कि नूरा-कुश्ती के इस दौर में विजेता कौन होता है.. कही दो की लड़ाई
मे तीसरा हाथ मार देगा क्या…..?

 

यहा सब… आल-ईज-वेल….?
प्रदेश में हा-हाकार बचा हुआ है कि नया जिला में सरकारी खाद बेच खा रहे है… नया जिला मे सरकारी
बीज बेच खा रहे है.. नया जिला मे नये खसरा और नये रकबा के साथ नये किसान बिना आधार कार्ड के
पैदा हो गये है और यहा पर दूसरे के भूमि पंजीयन मे दूसरे का खाता बन भी जाता है। ऐसे गंभीर
आरोपो के बीच खेती-किसानी वाला विभाग को हर चीज आल-ईज-वेल दिख रहा है.. बताया जा रहा है कि
ना तो खाद दुकानो का निरीक्षण हो रहा है… ना तो कीटनाशक वालो का सैंपल लिया जा रहा है.. और ना
ही कभी स्टाक… मूल्य.. आदि को प्रदर्शन करने के नियमो का पालन कराने के लिये विभाग सक्रिय
दिखता है… पुराने जिला मे हर वर्ष दो-तीन घपला-घोटाला और अधिक मूल्य के प्रकरण सिर्फ इसी अंचल
मे बनता था.. किन्तु नया जिला बनने के बाद खेती-किसानी वाला विभाग के बड़े साहब लिफाफा लेते ही
कहने लगते है कि यहा पर आल-ईज-वेल है…। अब चाहे खाद का कालाबाजारी दुगुनी हो जाये.. या बिना
लाईसेंसी कीटनाशक यहा पर धड़लले से बिक जाये.. एक ही नारा यहा पर चल रहा है ….आल-ईज-वेल…..।

तीन आसान सवाल

1. रेरा मे बिना पंजीयन के जमीन बेचने का खुलेआम बोर्ड लगाकर एड़वांस में लिखा-पढ़ी करने वाले
भू-माफियाओ का नाम क्या-क्या है?

2. भगवा दल के मुखिया के निवास पर तिरंगा पार्टी वाले किस बड़े नेता का “चाय पर चर्चा” चला
है?

3. जमीन की राजिस्ट्री में “सरकारी साहब” का निजी फीस कितना प्रतिशत है?

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