सारंगढ़ विधानसभा सीट अंतिम दौर में कांटे के टक्कर में त्रिकोणीय संघर्ष में फंस गई!
भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला, बसपा का प्रदर्शन करेगी जीत-हार तय,
उत्तरी जांगड़े क्या दुबारा विधानसभा जीत कर इतिहास रचेगी?
छत्तीसगढ़ बनने के बाद शिवकुमारी क्या पहली गैरसतनामी विधायक बनेगी?
भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर मे मामला अब बूथ मैनेजमेंट पर निर्भर?
गरीब और अमीर प्रत्याशी का मुद्दा भी क्षेत्र मे गर्माया?
सारंगढ़,
सारंगढ़ विधानसभा सीट पर 48 घंटे के बाद होने वाला मतदान के पहले सभी राजनितिक दल अपना पूरा ताकत झोंक दिये है। एक ओर जहा कांग्रेस दुबारा चुनाव जीत कर नया इतिहास बनाने के लिये आतुर दिख रही है वही संगठ़ित कार्यकर्ताओ के सहारे भाजपा यहा पर उलेटफेर करने के लिये सशक्त रणनिति के तहत लो-प्रोफाईल चुनाव ल़ड़ रही है। वही सबकी निगाहे बसपा पर टिकी है। बसपा का प्रर्दशन इस विधानसभा सीट के जीत-हार को तय करेगा? वही आम आदमी पार्टी की पहली परीक्षा इस चुनाव मे अपना प्रदर्शन को लेकर है जिसमें वह किस हद तक सफल होती है यह तो 3 दिसंबर को ही ज्ञात होगा। वही राजनितिक जानकारो का मानना है कि उम्मीदवारो की घोषणा के बाद से माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में मतदान के पूर्व ही अंचलवासी रूझान दे देगा वह गलत साबित हुआ और पूरा चुनाव कांटे की टक्कर मे तब्दील हो गया है।
सारंगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर कभी भी पूर्वानुमान सही साबित नही होते है। यह बात यहा के पूर्व के नतीजो को देखने से मिलता है। सारंगढ़ विधानसभा सीट ऐसी सीट है जहा पर निर्दलीय भी चुनाव जीते है तो छत्तीसगढ़ निमार्ण के बाद बसपा, कांग्रेस और भाजपा ने भी चुनाव जीते है। यहा पर व्होटो का अंतर कभी 117 व्होट जैसे मामूली संख्या पर भी आई हुई है तो 52 हजार का विशाल अंतर भी यहा पर इतिहास बनाया है। ऐसे उठापटक वाले सारंगढ़ विधानसभा सीट पर परिणाम के पहले पूर्वानुमान का दावा करना सिर्फ और सिर्फ थोथी हवा-हवाई साबित होती है। सारंगढ़ विधानसभा सीट पर वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो वर्तमान मे त्रिकोणीय संघर्ष मे फंसा यह सीट 7 अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग समीकरणो से उलझ गया है। सामाजिक समीकरण और जातीय समीकरण के बाद यहा पर बड़ा मामला बूथ लेबल के मैनेजमेंट का आता है और वही पर भीतरघात का भी बड़ी रोल सामने पता चलता है। इस विधानसभा चुनाव में रोचक बात एक और निकलकर सामने आ रहा है कि पंचायत चुनावो की सीटो पर लड़ने वाले उम्मीदवारो के प्रति आक्रोश भी कुछ स्थानो पर विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर रहा है। विधानसभा चुनाव के नामांकन के बाद लगभग पखवाड़े भर तक चले चुनाव प्रचार में कांग्रेस और भाजपा के पास प्रदेश स्तरीय घोषणा पत्र के अलावा कोई बड़ी विशेष बात नही रही थी। भाजपा जहा मोदी सरकार के गुणगान और घोषणा पत्र मे शामिल धान का मुद्दा और महतारी वंदन के सहारे अपने परंपरागत व्होट बैंक को सहजने मे ताकत लगाते दिखी वही कांग्रेस भी किसान और धान के साथ कर्जामाफी के दम पर मैदान पर उतरी है। सारंगढ़ जिला निमार्ण को श्रेय लेते हुए कांग्रेस इसे चुनाव मे भुनाने का प्रयास करती दिखी वही 5 साल की सक्रियता को सामने रख मतदाताओ को अपने पक्ष मे करने कांग्रेसी रणनितिकार पैरवी करते दिखे। वही क्षेत्र में कांग्रेस को अपने कई कार्यकर्ताओ के कार्यशैली के कारण से नारजगी का सामना करना पड़ा। कई ऐसे कार्य रहे जिसके कारण से कुछ कार्यकर्ताओ को मैदान से ही बाहर करना पड़ा और कई स्थान पर डैमेज कंट्रोल करना पड़ा। वही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा वर्तमान में महतारी वंदन योजना का सामने आया था जिसके अंड़र करंट और भाजपा के फार्म भरने संबंधी के दांव के कारण से कांग्रेस बुरी तरह से परेशान हो गया तथा दीपावली के दिन कांग्रेस को भी गृह लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओ के लिये घोषणा कर डैमेज कंट्रोल करना पड़ा। वही अब सबकी निगाहे अब बूथ लेबल मैनेजमेंट पर टिक गया है। आर्थिक रूप से संपन्न कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर जानकारो का दावा है कि बूथ लेबल के मैनेजमेंट में कांग्रेस उम्मीदवार सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है वही भाजपा के जानकार इस बिन्दु पर कमी को स्वीकार करते हुए इस बात पर जोर दे रहे है अमीर उम्मीदवार के सामने भाजपा ने सामान्य कार्यकर्ता जो कि आर्थिक रूप से गरीब है उसको मैदान पर उतारा है। वही तीसरी शक्ति बसपा के प्रदर्शन पर सबकी निगाहे टिकी है। भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले अपनी विचारधारा से अपने परंपरागत व्होट बैंक को संरक्षित करने मे अन्य दलो से बसपा ज्यादा मजबूत बैठती है। परिसीमन के पहले लगातार दो बार चुनाव जीतने वाली बसपा को इस विधानसभा चुनाव मे कमजोर आंकना राजनितिक दलो की बड़ी भूल साबित हो सकती है। गत चुनाव में 31 हजार से अधिक व्होट पाकर बसपा ने अपना व्होट बैंक संरक्षित और सुरक्षित रखने का संदेश प्रदान कर दिया था। वही आसन्न चुनाव में भी बसपा अपना व्होट बैंक में सेंधमारी रोकने के लिये पूरी तरह से सर्तक दिख्र रही है। वही आम आदमी पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में मैदान पर है और उसको मजबूत प्रदर्शन अपनी उपस्थिति के साथ साथ मजबूती को दिखाने का यह बेहतर अवसर है। जिसके कारण से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सक्रियता के आयने मे किसी से कम नही दिख रहे है।
उत्तरी जांगड़े क्या दुबारा जीत कर इतिहास बना पायेगी?
सारंगढ़ विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ बनने के बाद कोई भी विधायक दुबारा नही जीत पाया है? सारंगढ़ सीट के साथ जु़डी इस मिथक को क्या कांग्रेस उम्मीदवार उत्तरी जांगड़े तोड़ पायेगी? क्या दुबारा जीतकर उत्तरी जांगड़े इतिहास बना पायेगी? यह सवाल गांव-गलियो मे चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। जानकारो की माने तो प्रारंभिक दौर में कांग्रेस के पास गत चुनाव में 52 हजार व्होटी की जीत तथा सारंगढ़ जिला निमार्ण के साथ साथ प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के द्वारा गैर सतनामी उम्मीदवार मैदान में जतारने के समीकरण था जिससे उत्तरी को लाभ मिलते दिख रहा था किन्तु समय के साथ यह सब बात पुरानी हो गई और भाजपा का घोषणा पत्र, महतारी वंदन तथा एंटी इन्कम्बेंसी के साथ साथ कुछ कांग्रेस के बड़े चेहरो के प्रति नारजगी और उम्मीदवार की घोषणा होते ही बड़ी मार्जिन से जीत का दावा का अति आत्मविश्वास से यह सीट अब बराबरी के मुकाबले मे फंसी दिख रही है। जानकारो की माने तो शुरूवाती दिनो मे कांग्रेस को मिली बढ़त अब उलझ़ गई है तथा सारंगढ़ विधानसभा सीट पर अब कुछ भी हो सकता है।
छ.ग.बनने के बाद क्या गैरसतनामी विधायक बन पायेगी शिवकुमारी?
सारंगढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा ने इस बार बड़ा दांव खेला है और परंपरागत रूप से सतनामी समाज से उतरने वाले विधानसभा उम्मीदवार को इस बार गैरसतनामी चेहरे को भरोसा जताते हुए चौहान समाज से शिवकुमारी सारधन चौहान को मैदान मे उतारा है। आर्थिक रूप से कांग्रेस उम्मीवार के मुकाबले कमजोर शिवकुमारी चौहान के मजबूत चुनाव संचालन के बिना ही अपनी सरल छबि से लोगो को प्रभावित कर रही है। वही भाजपा का घोषणा पत्र जिसमे धान का सर्मथन मूल्य तथा महतारी वंदन का योजना शामिल था वह भाजपा उम्मीदवार शिवकुमारी चौहान के लिये संजीवनी बूटी की तरह काम किया। सामाजिक तथा जातीय समीकरण के साथ साथ क्षेत्रवाद के फार्मूला मे सारंगढ़ विधानसभा सीट पर अलग तरह का दांव चलकर भाजपा ने परंपरागत विपक्षी दल कांग्रेस को चौका दिया है। नाम की घोषणा के बाद कमजोर मानी जा रही भाजपा उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओ की कैडर और उर्जावान कार्यशैली से मुकाबले मे आने लगी और अंतिम दौर मे लगभग बराबरी की मुकाबले में मैदान मे डटी हुई है। भाजपा उम्मीदवार शिवकुमारी को कांग्रेस विधायक के एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर पर भी काफी उम्मीद है वही उनको टिकट दावेदारो की औपचारिक रूप से चुनाव मे पार्टी के लिये नाम मात्र का काम करना भी बड़ा कमजोरी के रूप मे सामने आ रहा है। अब पूरा मुकाबला बूथ लेबल मैनेजमेंट पर टिका हुआ है यदि सधी हुई रणनिति के तहत भाजपा कार्यकर्ता बूथ लेबल पर अपना काम कर देते है तो शिवकुमारी चौहान छ.ग. बनने के बाद पहली गैरसतनामी विधायक बन सकती है।
छुपा रूस्तम साबित हो सकते है बसपा के नारायण रत्नाकर
सारंगढ़ विधानसभा चुनाव में चुनावी प्रचार के शोर-शराबा से दूर अपनी विचारधारा की मजबूती के लिये जाना जाने वाले बसपा एक बड़े क्षेत्र मे अपने प्रभाव से हार और जीत का निर्णय अपने प्रदर्शन के आधार पर कराती है। गत चुनाव मे कांग्रेस की एकतरफा लहर के बाद भी बसपा अपनी कुनबा के 31 हजार से अधिक व्होटो को सम्हाले मे कामयाब रहा है। इस बार बसपा ने अपने विचारधारा के कट्टर कार्यकर्ता नारायण रत्नाकर को मैदान पर उतारा है। बसपा की प्रारंभिक कोशिश अपने गढ़ को सुरक्षित करने मे रहा है और कार्यकर्ताओ को जोश के साथ मैदान मे उतारना रहा है और अभी तक बसपा पूरी ताकत से मैदान मे संघर्ष कर रही है। कई ऐसी ताकते रही है जो इस बात का दावा करती थी कि बसपा को कोइ एक पक्ष अपने पाले मे कर सकता है किन्तु सारे अफवाहो को किनारे करते हुए बसपा सारंगढ़ विधानसभा के सीधा मुकाबला को त्रिकोणीय संघर्ष में तब्दील करने मे सफल रही है। अंतिम दौर के मैनजमेंट और अपने टारगेट को पूरा करने मे जुटी बसपा इस सीट पर छुपा रूस्तम भी साबित हो सकती है।
छोटी मार्जिन में नोटा और अन्य उम्मीदवार प्रभावी दिख सकते है?
सारंगढ़ विधानसभा सीट पर गत चुनाव में नोटा को 2300 से अधिक व्होट मिले थे वही अन्य आधा दर्जन उम्मीदवारो को 8 हजार व्होट मिले थे। चूंकि जीत का मार्जिन 52 हजार व्होटो का था तो यह प्रदर्शन अन्य उम्मीदवारो का दब गया। किन्तु इस बार के कांटे के संघर्ष के मुकाबले मे नोटा और अन्य उम्मीदवारो का प्रदर्शन भी बड़ा महत्वपूर्ण हो गया है। आम आदमी पार्टी से देव प्रसाद कोसले के प्रदर्शन पर सभी की नजरे जमी हुई है। पहली बार चुनावी मैदान मे उतरी आम आदमी पार्टी जितना ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करेगी उतना ज्यादा नुकसान सत्ताधारी दल को करेगी। वही अन्य उम्मीदवार और नोटा फिर एक बार अपने प्रदर्शन से जीत-हार के छोटे मार्जिन मे अपनी बड़ी उपस्थिति साबित करने मे लगे हुए है। ऐसे मे विधानसभा चुनाव रोचक मोड़ पर आ गया है। यहा पर जनता जोगी कांग्रेस ने पूर्व विधायक छबिलाल रात्रे को चुनावी मैदान मे उतारा है। जबकि शैल अजगल्ले निर्दलीय के रूप मे मैदान मे है। वही श्रीमती ललिता बघेल, जनता कांग्रेस से मैदान मे है। वही धनका निराला, छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी तथा मधुलाल सारथी, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी से चुनावी रण मे उतरे है। जिसके कारण से निर्दलीय तथा छोटे दलो से चुनावी मैदान पर उतरे उम्मीदवारो का प्रदर्शन काफी हद तक चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
भीतरघात सबसे बड़ी समस्या बनी?
सारंगढ़ विधानसभा चुनाव में राजनितिक दलो के रणनितिकार इस बार विपक्षी दलो के असंतुष्ट को साधने मे ज्यादा लगे हुए है। कांग्रेस को भीतरघात का बड़ा डर सता रहा है इस कारण से अधिकांश समय नाराज नेताओ को मनाने मे लगा दिये है। वही भाजपा को भी अपने उन दावेदारो का अरूचि का डर सता रहा है जिन्हे टिकट नही मिल पाया है। वही अनुशासित माने जाने वाली पार्टी भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर काफी उथल पुथल मचा हुआ दिख रहा है जिसका सीधा असर चुनाव परिणाम मे दिखने की आशंका जानकार बता रहे है। जानकारो की माने तो सारंगढ़ विधानसभा चुनाव में भीतरघात बड़ा फैक्टर के रूप मे सामने आता है और हर बार की तरह इस बार भी भीतरघात निर्णायक रूप ले सकता है। वही जानकारो की माने तो बसपा इस बार भीतरघात के संक्रमण से दूर दिख रही है।
क्या है सामाजिक समीकरण?
सारंगढ़ विधानसभा सीट पर लगभग 2.63 लाख मतदाता है जिसमे से लगभग 27 प्रतिशत के आसपास है यानि 75 हजार मतदाता अजा वर्ग से आते है। इस वर्ग में 40 हजार से 45 हजार मतदाता सतनामी समाज का प्रतिनिधित्व करते है। वही लगभग 18 से 20 हजार मतदाता चौहान समाज का प्रतिनिधित्व करते है जबकि 8 से 10 हजार मतदाता सारथी समाज सहित अन्य छोटे-छोटे समाज का प्रतिनिधित्व करते है। इसी प्रकार से अजजा यानि आदिवासी समाज के लगभग 20 हजार मतदाता इस विधानसभा सीट पर अपनी प्रभावी भूमिका निभाते है। वही ओबीसी फैक्टर में साहू समाज और अघरिया समाज बड़ा रोल मे दिखते है। साहू समाज के लगभग 30 से लेकर 35 हजार तथा अघरिया समाज के 30 से लेकर 35 हजार की मतदाता से चुनावी समीकरण काफी हद तक प्रभावित होता है। बताया जा रहा है कि इनके अलावा चन्द्राहू समाज, यादव समाज, देवांगन समाज, निषाद समाज, श्रीवास समाज, माली समाज, मरार समाज, कोलता समाज सहित ओबीसी में आने वाली अन्य समाजो की संख्या लगभग 30 से 35 हजार के आंकड़ो को छू रही है। जिसके कारण से ओबीसी की संख्या ही लगभग 1 से 1.50 लाख है। जो कि निर्णायक व्होटरो के रूप मे जाने जाती है। वही सामान्य वर्ग के केशरवानी, अग्रवाल तथा ब्राहम्ण सहित कुछ अन्य व्होट बैंक भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इस प्रकार से ओबीसी व्होटरो को लुभाने वाले राजनितिक दल पूरे चुनाव को अपने कब्जे मे कर सकते है।
क्षेत्रवाद के समीकरण पर टिकी सबकी निगाहे?
सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र को मुख्य रूप से 7 भागो मे बांटा गया है। जिसमे से पहला भाग कोसीर क्षेत्र को कहा जाता है। वही केड़ार क्षेत्र, रायगढ़ रोड़, सालर-मल्दा-नौरंगपुर क्षेत्र, सारंगढ़ सिटी भी सारंगढ़ अंचल में गिना जाता है। वही बरमकेला क्षेत्र में पहला भाग बरमकेला पट्टी तो दूसरा भाग कोठीखोल-डोगरीपाली क्षेत्र कहलाता है। लगभग 2.63 लाख मतदाता वाले इस विशाल भू-भाग मे फैले सारंगढ़ विधानसभा सीट पर 345 मतदान केन्द्र है। इस क्षेत्रवाद के समीकरण मे उलझा हुआ सारंगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती उत्तरी जांगड़े कोसीर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है वही भाजपा उम्मीदवार केड़ार क्षेत्र के रहवासी है। इसी प्रकार से बसपा उम्मीदवार नारायण रत्नाकर रायगढ़ रोड़ के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सारंगढ़ शहरी क्षेत्र मे आते है। ऐसे मे क्षेत्रवाद भी इस बार के चुनाव मे बड़ा फैक्टर के रूप मे सामने आया है। मतदान के बाद 3 दिसंबर को होने वाले मतगणना के बाद ही ज्ञात होगा कि क्षेत्रवाद का मुद्दा इस चुनाव मे कितना गंभीर होकर सामने आया है।
सारंगढ़ विधानसभा प्रत्याशियों की हार जीत का फैसला करती है बरमकेला
सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत बरमकेला जो की सारंगढ़ विधानसभा के प्रत्याशियों का हार जीत का फैसला बरमकेला की जनता करती है। बरमकेला क्षेत्र में लगभग 80000 वोट है। यहां की जनता भाजपा और कांग्रेस दो बड़े पार्टी को ही देखकर अपना मतदान करती है। पिछले विधानसभा की माने तो भाजपा और बहुजन समाज पार्टी के साथ बरमकेला की जनता कांग्रेस पर भरोसा जताया था। 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी उत्तरी गनपत जांगड़े को विधायक चुना था।
सारंगढ़ विधानसभा सीट में इस बार भाजपा के द्वारा सारंगढ़ की रीति रिवाज के साथ नए प्रत्याशी शिव कुमारी चौहान को प्रत्याशी बनाया गया है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो जाति समीकरण को देखते हुए सारंगढ़ की रीति रिवाज को बरकरार रखते हुए पुनः उतरी जांगड़े को भरोसा जताते हुए कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया है। बहुजन समाज पार्टी के द्वारा नारायण रत्नाकर को प्रत्याशी घोषित किया गया है। अब देखना यही होगा कि बरमकेला के धरातल में किस पार्टी की धरोहर में चुनाव प्रचार के साथ चुनावी दौरा किसकी भारी होती है यह जनता ही तय करती है। लगभग सभी पार्टियों के द्वारा बरमकेला के सभी गांव की जन्म भूमि में अपनी-अपनी प्रचार प्रसार एवं जनसंपर्क से लोगों को आशीर्वाद मांगने का काम लगभग पूरा हो चुका है। गांव-गांव में चौक चौराहा में लोगों के द्वारा एक ही बात की आवाज उठ रही है कि अब की बार किसकी सरकार? कुछ लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में पुनः कांग्रेस की सरकार भरोसे की सरकार बरकरार रहने वाली है। वही बात करते हैं सारंगढ़ की तो कुछ लोगों का कहना है कि योग्य प्रत्याशी को देखते हुए पुनः उतरी जांगड़े पर भरोसा जताने की बात कह रहे हैं। वही बात करें कुछ गांव की तो बराबरी की बात कह रहे हैं। आखिर 17 नवंबर को ही मतदाताओं को आखिरी फैसला करके सारंगढ़ का सरकार बनती है यह 3 सितंबर को ही फैसले का नतीजा आएगा।
बरमकेला क्षेत्र की बात करें तो विकास तो गांव-गांव में मूलभूत की सुविधा पिछले 15 साल के बदले 5 साल में बेहतर काम करने का लाभ कांग्रेस के द्वारा जनता को पहुंचा है। गांव गरीब किसान सभी वर्ग के लोगों को लाभ पहुंचाने का काम कांग्रेस के द्वारा किया गया है। सड़क पानी बिजली बे बुनियादी सुविधाओं को गांव-गांव पहुंचने का काम किया गया है।
लेकिन बरमकेला की जनता की मांग एक बड़ी मांग है जो कांग्रेस सरकार रहते हुए नहीं हो पाई अनुविभागीय दर्ज नहीं मिल पाया। विशाल आम सभा में लोगों का उम्मीद था कि बरमकेला को अनुविभागीय दर्ज मिलेगा। लेकिन कुछ भूपेश बघेल के द्वारा घोषणा नहीं किया गया। क्या इस बात जानता भाजपा और कांग्रेस के घोषणाओं पत्र को तराजू की तरह तौल कर वोट देने वाली है। दोनों के घोषणा पत्र में तराजू किसकी और झुकती है यह जनता जनार्दन है तय करेंगे और इसका फैसला 3 सितंबर को सबके सामने जग जाहिर होगा।