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सारंगढ़ में विश्व का अनोखा विजयदशमी उत्सव “गढ़ उत्सव” संपन्न, मोहर सिंह ठाकुर बने विजेता

सारंगढ़ में विश्व का अनोखा विजयदशमी उत्सव “गढ़ उत्सव” संपन्न, मोहर सिंह ठाकुर बने विजेता
नवीन जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ की सबसे दुर्लभ उत्सव है गढ़ उत्सव
20 हजार से अधिक की भीड़ रही
मोहर सिंह ठाकुर रहे गढ़ विजेता
200 सौ साल से भी अधिक पुरानी है परंपरा,
सारंगढ़,
नवीन जिला बना सांरगढ़-बिलाईगढ़ के रियासतकालीन परंपारिक गढ़-उत्सव का आयोजन आज विजयदशमी पर्व पर खेलभांठा स्थित गढ़ स्थल पर संपन्न हुआ।200 से भी अधिक वर्षो से संपन्न होते आ रहा इस गढ़ विच्छेदन खेल में 30 से अधिक प्रतिभागी भाग लिये जिसमे मोहर साय ठाकुर ने इस बार गढ़ विजेता का खिताब अपने नाम किया। लगभग 20 हजार से अधिक की भीड़ यहा पर गढ़ को देखने के लिये उमड़ी। गढ़ विच्छेदन होने के तत्काल बाद 40 फीट ऊंचा रावण का पुतला का दहन किया गया। उसके बाद हजारो की भीड़ सारंगढ़ शहर पहुंचकर मां सम्लेश्वरी और मां काली मंदिर का दर्शन करने के साथ साथ विभिन्न चौक-चौराहो पर विराजे मां दुर्गा का दर्शन करते हुए शहर मे मेला सा माहौल बना दिया।
कैसा होता है गढ़ उत्सव
छत्तीसगढ़ मे मनाये जाने वाले दशहरा उत्सव के विभिन्न परंपराओ के बीच सारंगढ़ अंचल का दशहरा उत्सव अपनी अलग ही पहचान और गौरवगाथा समेटे हुए है। इस दशहरा उत्सव का आयोजन लगभग 200 वर्षो से होते आ रहा हे जिसका आयोजन आज भी राजपरिवार गिरीविलास पैलेस करते आ रहे है। इस गढ़ समारोह मे सारंगढ़ के प्रसिद्ध खेलभांठा स्टेडियम के पास गढ़ बना हुआ है यह गढ़ लगभग 200 वर्ष पुराना है यह मिट्टी का एक टिला है जिसके सामने में 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होते जाती है जहा पर लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चौड़ी ही रह जाती है जहा पर ऊपर मे पीछे से सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीला से ऊपर मे रहते है वही इस टीला के स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चौड़ा तथा 10 फीट गहरा तालाबनुमा गड्ढा मे पानी भरा रहता है जहा पर से इस गढ़ मे नुकीला हथियार से गड्ढा करके ऊपर चढ़ते है तथा समीप मे सीमारेखा बनी रहती है जिसके अंदर से प्रतिभागी को ऊपर चढऩा रहता है। जिसमे उन्हे ऊपर के सुरक्षा प्रहरियो से लोहा लेना होता है। पूर्व रियासत काल मे यहा की सेना ऊपर मे रहती थी जबकि आजकल ऊपर मे वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते है। इस आयोजन का शुभारंभ सारंगढ़ राजपरिवार के राजा के द्वारा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन मे छोडक़र किया जाता है। तथा क्षेत्रवासियो को विजयीदशमी पर्व का शुभकामनाये प्रदान करते है। उसके बाद यह प्रसिद्ध गढ़ उत्सव प्रारंभ होता है जहा पर लगभग 40 से 50 प्रतिभागी इस गढ़ मे चढऩा प्रारंभ करते है तथा एक दूसरे का पैर खींच कर विजेता बनने से रोकते है। वही पर जो प्रतिभागी ऊपर के सुरक्षाकर्मी से संघर्ष करके तथा नीचे के पैर खीचने वाले से जीत कर गढ़ पर विजयी प्राप्त करता है उसे सारंगढ़ का वीर की पदवी मिलती है। यह विजेता ही बगल मे स्थापित लगभग 40 फीट ऊंचे रावण को आग के हवाले करता है। तथा विजेता को धोती कुर्ता और 501रू नगद प्रदान किया जाता है। पूर्व रियासतकाल मे गढ़ विच्छेदन मे विजय श्री धारण करने वाले को राजमहल मे सम्मान के साथ राजदरबार मे बिठाया जाता था।

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