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तीसरी आंख की पैनी नजर


शहर सरकार को भसकाने में जुटे भगवा नेता..


राज्य में सरकार आने के बाद देश का चुनाव भी निपट गया और अब बारी है विपक्षी दल के शहर सरकार को निपटाने की। होने को अभी आधा कार्यकाल भी नही हुआ है किन्तु शहर सरकार को भसकाने के लिये जुगत लगाना शुरू हो गया है। शतरंज के बिसात बिछानी शुरू हो रही है। भगवा दल का एक पुराना चेहरा चाहता है कि पूरा शहर सरकार भसक जाये। क्योकि इस सरकार के साथ भगवा दल के तीन प्रतिभाशाली चेहरे भी है जो कि शहर मे जनसर्मथन के साथ डटे रहते है। ऐेसे में भगवा दल के आपसी लड़ाई मे तीनो को भी निपटाने का खेल शुरू हो गया है। वही इसके लिये राजधानी का भी दौरा हो गया है और मंत्री जी से चर्चा भी हो गया है। किन्तु समस्या वही आ रहा है कि सरकार भसकाने के बाद तीन भगवा वालो को यहा का प्रभार देकर तदर्थ से काम चलाने के लिये मंत्री जी के आदमी संकेत दे रहे है। ऐसे मे जल्द ही शहर सरकार को लेकर महाभारत की कहानी शुरू होने वाली है। वैसे पंजाछाप के भी कई चेहरे चाहते है कि शहर सरकार जल्द ही भसक जाये। अब कौन-किसके साथ है? यह तो बात मे पता चलेगा।


डायरेक्ट जिले के मुखिया सें लड़ाई…


अंचल मे यदि किसी विभाग के किसी सरकारी करिंदे से कोई काम फ्री मे नही होता है तो वह विभाग और उस सरकारी करिेंदे के बारे मे आम जनता सही-सही बता देगी। और पिड़ित के आवेदन पर कड़ी कार्यवाही से विभाग और सरकारी करिंदे सुधरने के स्थान पर दबाव की रणनिति पर उतर गये है। न्यायालय से स्टे और बड़े-बड़े भू-माफियाओ के द्वारा हर प्रकार का सहयोग से सरकारी करिंदे डायरेक्ट जिले के मुखिया अधिकारी के खिलाफ ही मैदान पर उतर गये है। उनको लगता है कि इस लड़ाई को वे जीत गये तो कैसे भी काम करे.. किसी से कितना भी उगाही करे… कोई शिकायत नही होगा… और शिकायत हो भी गया तो कार्यवाही तो नही होगा.. ऐसा सोचकर ऐसा करने वाले कई चेहरे डायरेक्ट लड़ने के लिये मैदान पर उतर गये है। बिक्री नकल, सीमांकन, नामांतरण, पर्चा निमार्ण, बी-वन, खसरा जैसे कार्य में क्या लगता है? और कौन कितना चढ़ावा लेता है? यह सामान्य आचरण हो गया है। इसके बाद भी जिले के मुखिया को चैलेंज करके टेंट लगाकर बैठना साफ तौर पर दर्शाता है कि पर्दे के पीछे भू-माफिया कैसे लगा हुआ है…. साहब जी जरा टाईट किजिये.. सब बाहर निकल जायेगें…। अर्से से ट्रांसफर नही हुआ है..जरा कर दिजिये..।


गाताडीह मे करोड़ो का वारा न्यारा


छोटा सा गांव का बड़ा नाम वाला सोसायटी को गाताडीह कहते है। यहा पर चंद हजार या चंद लाख का नही बल्कि करोड़ो का खेला होता है। यहा पर अभी चार दोस्त जो एक साथ थे उनके बीच दरार आ गया है। हिसाब-किताब मे फर्क पड़ गया है। किसानो के नाम पर निकाला गया बड़ा राशी को लेकर महाभारत छिड़ गया है। ऐसे मे एक दूसरे को निपटाने के लिये अब खुलकर सभी दोस्त और पार्टनर आ गये है जो अब तक एक थे। ऐसे मे बात जांच मे पहुंच गई। फिर मैच मे वापसी हो गया पुराना मैनेजर का.. जिसके बाद लड़ाई पूरे उफान पर आ गया है। अब एक सोसायटी को लेकर शिकवा-शिकायत और पुराने लगभग आधा दर्जन एफआईआर के दस्तावेज को खंगालने के बाद जो बात सामने दिख रहा है कि बड़ी कार्यवाही नही होने से यहा पर बड़ा खेल हर वर्ष की भांति फिर होगा… साहब जी यहा का खेल का बड़ी जल्द बड़ा कार्यवाही किजिये… नही तो मामला ऊपर तक जाने वाला है..।


देख के भैया… प्लाट के नाम पर फंसना मत…


अंचल में एक भू-माफिया सक्रिय है। बताते है कि आधी रात को भी जमीन देखने के लिये युवा नेता निकल पड़ते है। कहा जाता है कि हल्का नंबर के बाद खसरा नंबर बताते देर है कि युवा नेता और उसकी टोली उस खसरा का रिकार्ड को मौखिक तौर पर बता देते है। सारंगढ़ के राजस्व विभाग से ज्यादा रिकार्ड इन भू-माफियाओ ने रख लिया है। अब अंचल जिला बना और अवैध प्लाट विक्रय करने की कहानी के सामने रेरा या एफआईआर का लफड़ा सामने आ गया। ऐसे मे रेरा मे पंजीयन का सब्जबाग दिखाकर जमीन बेचने का काम जारी है जबकि जिले मे रेरा मे एक भी पंजीयन नही है। ऐसे मे भलवाही मे 16 लोगो को बेचा गया प्लाट मे न्यायालय से करारी पराजय मिली और आज तक जमीन लेने वाले भटक रहे है। ना तो पैसा वापस मिला और ना ही जमीन वापस मिली। ऐसे मे जिसने जमीन दिलाया था वही अभी फिर से रेरा वाला काम हो गया है बोलकर झूठा दिलासा देकर फिर से जमीन बेच रहा है। जरा बचकर क्षेत्रवासियो इन पर भरोसा मत करो.. लाखो लगाकर ठगे जाओगे… । पहले पंजीयन का प्रमाण पत्र देख लो. फिर फंसना इनकी बातो में…।

तीन आसान सवाल

  1. जनपद पंचायत में राशी भुगतान में कमीशन की दर लगातार क्यो बढ़ रही है?
  2. शहरी अधिकारी के लिये कितनी राशी पर किसकी-किसकी डील हुई है?
  3. सारंगढ़-बरमकेला में कोटवारी भूमि पर काबिज लोगो मे हड़कंप क्यों मचा है?

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