
जिला अस्पताल का टूटा वाटर कूलर — विकास की प्यास अधूरी
सारंगढ़-बिलाईगढ़।
यह तस्वीर है जिले के सबसे बड़े स्वास्थ्य केंद्र यानी जिला अस्पताल प्रांगण की। यहां एक टूटा हुआ वाटर कूलर खड़ा है, मानो यह चुपचाप गवाही दे रहा हो कि “चाहे जितनी योजनाएं बन जाएं, चाहे कितने ही उद्घाटन हो जाएं, लेकिन व्यवस्था में बैठे गलत लोग हमेशा अच्छे कामों पर पानी फेर ही देते हैं।”
जिला अस्पताल बनने के बाद लोग उम्मीद कर रहे थे कि अब सुविधाएं सुधरेंगी, प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी मिलेगा, मरीजों और परिजनों को थोड़ी राहत मिलेगी। लेकिन हुआ उल्टा — वाटर कूलर खुद ही प्यासा खड़ा है और आने-जाने वालों को ठंडी मुस्कान के साथ देख रहा है। अस्पताल भले जिला स्तरीय हो गया, लेकिन सुविधाएं अभी भी तालुका स्तर से नीचे ही दिखती हैं।
यह टूटा कूलर मानो कह रहा हो – “बाबू लोग सिर्फ फाइल ठंडा कर लेते हैं, पानी ठंडा करने की जिम्मेदारी मेरी क्यों?” मरीज सोचते हैं इलाज से पहले अगर पानी पी लें तो राहत मिले, लेकिन यहां तो “बोतल खरीदो” नीति पर ही जोर है।
अगर जिला अस्पताल जैसे महत्वपूर्ण स्थान का यह हाल है, तो फिर गांव-कस्बों के अस्पतालों और उप स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।