
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला में “युक्तियुक्तकरण” के नाम पर खेला गया “अदला-बदली” का खेल?
जिले में शिक्षा व्यवस्था के सुधार की योजना में भारी अनियमितताएं उजागर?
युक्तीकरण के आड़ में कई दलाल हो गये “लाल”?
मुख्यमंत्री की मंशा के विपरीत यहा पर युक्तियुक्तकरण के नाम पर मनमानी?
जिले के आला अधिकारी को अंधेरे में रखकर किया गया बड़ा कारनामा?
पूरे मामले में सूक्ष्म जांच और कार्यवाही की मांग,
सारंगढ़ टाईम्स न्यूज/सारंगढ़,
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार और संसाधनों के संतुलन के उद्देश्य से वर्ष 2025 में शुरू की गई "युक्तियुक्तकरण योजना" को शिक्षा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक क्रांति के रूप में प्रस्तुत किया गया। शासन का दावा है कि यह योजना ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुनिश्चित करने हेतु शिक्षकों की उपलब्धता को संतुलित करेगी और बच्चों को समान अवसर प्रदान करेगी। लेकिन जब इस योजना को ज़मीनी स्तर पर लागू किया गया, तो इसका एक दूसरा ही रूप सामने आने लगा।
मुख्यमंत्री श्री साय के इस योजना को सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले मे संबंधित विभाग के अधिकारियो ने पतीला लगाने मे कोई कसर बाकि नही छोड़ी है जिसके कारण से पूरे मामले मे जांच की मांग हो रही है।
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया जिस तरह से क्रियान्वित की गई, उसने इस महत्वाकांक्षी योजना की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन शिक्षकों की समर्पित सेवा शिक्षा के क्षेत्र में रही है, उन्हें प्रक्रिया की खामियों और अधिकारियों की मनमानी का शिकार बनना पड़ा है। कई मामलों में शिक्षकों को जबरन स्थानांतरित किया गया, जबकि कुछ विशेष शिक्षकों को नियमों की अनदेखी करते हुए उनके मनपसंद स्थान पर पदस्थ किया गया। यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि कैसे एक अच्छी योजना भी भ्रष्ट तंत्र और निजी स्वार्थों के चलते अपनी मूल भावना से भटक सकती है। आइए नजर डालते हैं उन प्रमुख मामलों पर, जो इस योजना की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।
वरिष्ठता सूची का अस्पष्ट आधार
युक्तियुक्तकरण के अंतर्गत सहायक शिक्षकों के काउंसलिंग हेतु जो वरिष्ठता सूची तैयार की गई, वह खुद विवाद का कारण बन गई। इस सूची में शामिल शिक्षकों को यह ही स्पष्ट नहीं हो सका कि उन्हें किस आधार पर सूचीबद्ध किया गया है। कई वरिष्ठ शिक्षकों के नाम नीचे दर्शाए गए, जबकि अनुभव और सेवा अवधि अधिक थी। इससे नाराज होकर अनेक शिक्षक हाईकोर्ट बिलासपुर तक पहुंच गए। यह बताता है कि प्रक्रिया में पारदर्शिता का भारी अभाव रहा। दर्ज संख्या में गड़बड़ी और मनमाना पदस्थापना शासकीय कन्या प्राथमिक शाला, सरिया में पदस्थ सहायक शिक्षक भीमेश्वर पटेल को वर्तमान दर्ज संख्या 65 पर अतिशेष घोषित कर अन्यत्र पदस्थ कर दिया गया।
चौंकाने वाली बात यह रही कि उसी स्कूल में गलत दर्ज संख्या 79 प्रकाशित कर उसे रिक्त पद बताया गया और उस पर किसी अन्य शिक्षक का पदस्थापन कर दिया गया। यह ना केवल प्रक्रिया का मजाक उड़ाता है, बल्कि दर्शाता है कि किस तरह जानबूझकर व्यवस्था को अपने अनुसार तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। निर्देशों की अनदेखी: राजीव नगर का मामला शासकीय प्राथमिक शाला, राजीव नगर में दर्ज संख्या 31 पर तीन शिक्षक पहले से पदस्थ हैं, इसके बावजूद BEO बरमकेला नरेंद्र जांगड़े और BRCC राजकमल द्वारा उनमें से किसी को भी अतिशेष घोषित नहीं किया गया। यह सीधे-सीधे युक्तियुक्तकरण दिशा-निर्देशों (पृष्ठ क्रमांक 9, निर्देश क्रमांक 10, बिंदु 5) का उल्लंघन है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि कुछ स्थानों पर नियमों को लागू किया गया, तो कुछ स्थानों पर जानबूझकर अनदेखा किया गया।
काउंसलिंग प्रक्रिया में पक्षपात और गड़बड़ी
युक्तियुक्तकरण नीति के अनुसार, चिन्हांकित अतिशेष शिक्षकों का पदस्थापन पहले शिक्षकविहीन विद्यालयों में, फिर एकल शिक्षक स्कूलों में और अंततः अधिक दर्ज संख्या वाले स्कूलों में किया जाना था। लेकिन वास्तविकता इसके उलट देखी गई। अधिकारियों ने पहले से ही अधिक दर्ज संख्या वाले स्कूलों में अपने चहेते शिक्षकों को पदस्थ किया और शिक्षकविहीन स्कूल उपेक्षित रह गए। इससे साबित होता है कि काउंसलिंग प्रक्रिया पूरी तरह मनमाने ढंग से चलाई गई, जिसमें पारदर्शिता और निष्पक्षता की घोर कमी रही।
शिक्षकों में बढ़ती असंतुष्टि और अविश्वास
इस पूरी प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित वे शिक्षक हुए जो वर्षों से अपने कार्यों को ईमानदारी से निभा रहे थे। उनके मन में शासन और प्रशासन के प्रति रोष और अविश्वास की भावना पनपने लगी है। मजबूर होकर कई शिक्षक न्यायालय की शरण में गए हैं, जिससे न केवल प्रशासन की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था भी चरमराने लगी है। शिक्षकों के अनियोजित और मनमाने स्थानांतरण का सबसे ज्यादा असर विद्यार्थियों पर पड़ा है। कई स्कूलों में शिक्षक विहीन स्थिति उत्पन्न हो गई है, तो कहीं एकल शिक्षक स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षक पदस्थ हैं। इससे न केवल शैक्षणिक सत्र बाधित हुआ, बल्कि बच्चों की नियमित पढ़ाई भी प्रभावित हुई।
युक्तियुक्तकरण योजना का मूल उद्देश्य शिक्षा को मजबूत बनाना था, लेकिन
इसके क्रियान्वयन में जिस प्रकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार सामने आया है, उसने इस योजना को संदेह के घेरे में ला दिया है। यदि शासन इस योजना को वाकई सफल बनाना चाहता है, तो उसे जल्द से जल्द एक स्वतंत्र जांच समिति गठित कर इन सभी अनियमितताओं की गहन जांच करानी चाहिए। साथ ही दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की योजनाएं अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बना सकें।