तीसरी आंख की पैनी नजर
अभी भी पड़ोसी जिला जिन्दाबाद?
पड़ोसी जिला बोलो या पुराना जिला बोलो या मातृ जिला बोलो.. जो भी बोलो अभी लाखो रूपये प्रतिदिन का काला कमाई करने वाले इसी जिले के अधिकारियो का जिंदाबाद कर रहे है। हर माह लिफाफा इसी जिला के विभागो को दे रहे है। सरकारी विभागो के साथ साथ गैरसरकारी लोगो को भी अभी उतना ही मान-सम्मान और ईज्जत दे रहे है जितना पहले दे रहे थे। कारण यह है कि पुराना जिला में ही इस माफिया क्षेत्र का कामधाम चल रहा है। पहले से ही जमा-जमाया सेटअप मस्त चल रहा है। नेता-अधिकारी-एजेंट सब को बराबर वैसा ही पूछ रहे है जैसा पहले पूछते थे। लेकिन कब तक पुराने जिले मे ही आरती-पूजा और प्रसाद चढ़ाने का काम ये खोदापुर वाले करेंगें? यह सवाल नये जिले वाले बार-बार पूछ रहे है। हर मामले मे पुराने वालो को जिस प्रकार से तज्जवो दे रहे है उससे नये जिले के सरकारी करिंदे और गैर सरकारी करिंदे भी घाघ दृष्टि लगाकर देख रहे है कि जल्दी ही फाईलो की खेप आ आये फिर इन खोदापुर वालो को हवेली में बुलाना तो पड़ेगा ही। अब देखते है कि पुराने वाले इन्हे बचायेगें? या नये वालो का कुछ पूछ-परख करेगें।
कुंडली मार कर बैठे पसंदीदा साहेब और घाघ बाबू?
नया जिला बनने के बाद लगा था कि प्रशासनीक कसावट के लिये नये नये अधिकारी आयेगे और नया क्षेत्र जुड़ने के बाद पुराने और घाघ साहेब और बाबू साहेब का कम से कम टेबल तो अदल-बदल होगा। किन्तु नया जिला बनने के बाद उल्टा कड़ाई खत्म हो गया। सिंगल निलंबन या ट्रासर्फर नही हुआ। अब जो लोग आशा कर रहे थे कि बडे-बड़े साहब यहा पर बैठेगें तो मनमानी करने वाले साहेब और वर्षो से एक ही स्थान पर कुंडली मार कर बैठे घाघ बाबू के काम में या तो सुधार होगा? या टेबल बदलेगा? उनको बड़ा निराश होना पड़ा। क्योकि अब पूरा डर भी खत्म हो गया और घाघ लोग और भी सेंटरा हो गये। ऐसे मे एक पुराना जानकार सही बोले कि कम से कम 50 किलोमीटर दूर से साहब संतरी आते थे तो डर तो बना रहता था अब तो सब यही है तो वो डर भी खत्म हो गया। अब देखते है कि कुंडली मार के वषो से बैठे साहेब और बाबू साहेबो का यहा से अलग जगह पदस्थापना होगा या रिटायर्ट होकर ही वे जायेगें?
पुराना स्टेशन में खर्चा भारी-भारी?
शहर अब जिला बन गया है और शहर का पुराना स्टेशन अब प्रमुख स्टेशन बन गया। जिले के पहल नंबर पर स्टेशन का नाम आने लगा और यहा पर मलाई की आशा में यहा पर स्टेशन मास्टर बनने के लिये बड़े बोलिया शुरू हो गई। किन्तु 100 दिन मे ही यह स्थिति हो गई है कि यहा पर मास्टर बनने के लिये बोली लगाना तो छोड़िये यहा पर ना आ पाये इसके लिये लिफाफा छोड़ने का सिस्टम चालू हो गया। अब खबरनवीसो को समझ मे नही आया जो स्टेशन बहुत पुराना है तथा मलाई का हर क्ष्रेत्र इस स्टेशन मे आता है उस स्टेशन के मास्टर बनने के लिये कोई होड़ नही और ना कोई सोर्स? आखिर हुआ क्या है? तो पता चला कि अभी पूरा महकमा का खर्चा यही स्टेशन चला रहा है। वाटर मे ही 15 हजार फूंका जा रहा है तो लंच और डिनर और आवभगत का खर्चा का तो जोड़कर परेशान हो जायेगे? ऐसे में आसपास के छोटे स्टेशन के मास्टर बनकर चुपचाप कम कमाई करेगें। लेकिन आवभगत और अन्य खर्चो से तो बचेगें। देखते है कि मास्टर बनने वाले कैसे मास्टरी करके सबको मैनेज करेगें।
ग्रैड ओल्ड पार्टी में लीडरशिप खीचतान?
राजनिति का कखग सिखना है तो सबसे बेहतरीन जगह सारंगढ़ है। रियासतकालीन स्वतंत्र राज्य रह चुका यह क्षेत्र में राजनिति के हर हथकंड़े अपनाये जाते है। यहा पर कब विरोधी एक हो जाते है और कब फिर से जुदा हो जाते है और कब फिर से जानी दुश्मन हो जाते है? यह सिर्फ ऐसा करने वाले ही जानते है बाकि लोग पूछते है या सोशल मिडिया मे स्टेटस को देखते है तब जानते है। ऐसे मे ग्रैड ओल्ड पार्टी के लीडरशिप की नियुक्ति बड़ा पेचिदा मामला है। बड़े लेबल पर हो रहे खीचतान देखकर ऊपर बैठे लीडर भी बड़े हैरान है कि भरोसा किया जाये तो किस पर किया जाये। फिर एक दूसरे को निपटाने के लिये बना नया गठजोड़ में भी सामने मे मुस्कुराहट और हाथ में छुरी वाला किस्सा का डर बना रहता है। ऐसे में ग्रैंड ओल्ड पार्टी का लीडर कौन बनेगा? इस सवाल का जवाब बड़ा पेचिदा है। लेकिन जितना दावा और प्रतिदावा किया जा रहा है उससे लग तो यही रहा है कि मामला दिल्ली जायेगा और फायनल भी दिल्ली ही करेगा। रायपुरिंन के बस की बात यहा की राजनिति नही है।
तीन आसान सवाल
1. सादा कागज को सरकारी कागज बताकर प्रतिदिन कितने लाख की अवैध उगाही की जहाज उडाई जा रही है?
2. धुर विरोधी राजनिति में एक के आयोजन में किस दूसरे विरोधी पार्टी के प्रमुख ने मोटा चंदा दिया?
3. जिले में किस पटवारी हल्का में प्रतिदिन सर्वाधिक आवक है? इसके कर्ताधर्ता का नाम भी बतावे?