
सारंगढ़ अंचल के हरे-भरे गांवो को तबाह करने आ रहा है ग्रीन सस्टेनेबल कंपनी!
500 एकड़ का विशाल चूना पत्थर खदान का
होगा 24 सितंबर को जनसुनवाई,
2 हजार एकड़ से अधिक रकबे के खेती में
पड़ेगा प्रभाव,
दो फसली सिचिंत भूमि को जबरन लेने का
प्रयास में है ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी
चूना पत्थर खदान में लगेगा सबसे बड़ा क्रेशर प्लांट
प्रति घंटा 700 टन पत्थर का होगा क्रशिंग
सारंगढ़ टाईम्स न्यूज/सारंगढ़,
सारंगढ़ के खनिज क्षेत्र गुड़ेली और टिमरलगा में प्रदूषण की तबाही के बाद अब इन गांवो से लगे हुए 5 गांव में 500 एकड़ का चूना पत्थर का ओपन खदान खोलने के लिये ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के पर्यावरण स्वीकृति प्रस्ताव को लेकर 24 सितंबर को जनसुनवाई का आयोजन कपिस्दा में किया गया है। इस कंपनी के जनसुनवाई की सफलता से क्षेत्र के 2 हजार एकड़ से अधिक के रकबे पर होने वाले दो फसली खेती पर ग्रहण लग जायेगा तथा लगभग 450 एकड़ के भू-स्वामी अपने खेतो को चंद लाख में देकर चूना पत्थर खदान मे मजदूर की भूमिका में आ जायेगें। सारंगढ़ अंचल को बर्बाद करने के लिये आ रहा ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को लेकर लोगो मे गहरा आक्रोश है और सारंगढ़ के हरे भरे वातावरण मे
जहर घोलने वाले के खिलाफ 24 सिंतबर को बड़ा बवाल हो सकता है। दरअसल सारंगढ़ के 5 गांव लालाधुरवा, धौराभांठा, जोगनीपाली, सरसरा और कपिस्दा के हरे- भरे लहलहाती फसलों वाले खेत, हमेशा लबालब रहने वाला लात नाला, बीस तालाब, कई स्कूल, कई पीढिय़ों से बसी हुई आबादी, सब कुछ अब गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। सिर्फ एक कंपनी की ताकत इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि वह चुटकियों में पांच गांवों के निशान नक्शे से मिटा सकती है। बात हो रही है
ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की जो सारंगढ़ तहसील के पांच गांवों में करीब 500 एकड़ जमीन लेकर सबसे बड़ी लाईमस्टोन की खदान खोलने वाली है। जब ग्रामीणों से बात की तो उन्होंने कंपनी की एंट्री को एक धोखा बताया। कॉर्पोरेट ताकतों के आगे कोई भी शासन-प्रशासन आसानी से घुटने टेक देता है। ऐसा ही कुछ सारंगढ़ के पांच गांवों में भी हुआ है। पूरी तरह से खेती पर आश्रित पांच गांव लालाधुरवा, धौराभांठा, जोगनीपाली, सरसरा और कपिस्दा में अभी चारों तरफ हरी चादर बिछी हुई है। खेतों में धान की फसल लहलहा रही है। लात नाला किनारे बसे ये गांव खेती से ही संपन्न हैं। इनको किसी कंपनी की जरूरत नहीं है। हमने गांवों में जाकर पड़ताल की तो पता चला कि यहां ओबीसी, आदिवासी, हरिजन हर जाति के
लोग रहते हैं। सभी की आय का प्रमुख जरिया खेती ही है। पीढिय़ों से वे लोग गांव में रह रहे हैं। लालाधुरवा उप सरपंच शोभाराम पटेल का कहना है कि कंपनी के इस खदान की जानकारी प्रशासन ने उनसे छिपाई। धोखे से उनकी जमीनों पर खदान खुलवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। लालाधुरवा और धौराभांठा गांव की तकरीबन पूरी जमीन खदान में चली जाएगी।
एक भी आदमी के पास जीविका का कोई साधन नहीं होगा। गांव के ही गोविंदचंद्र पटेल कहते हैं कि यह गांव उनका है। वे किसी कंपनी को अपनी जमीनें नहीं देंगे। राधेश्याम पटेल का कहना है कि उनके पुरखे भी इसी गांव में रहे। अब कोई बाहर से आकर उनको गांव से नहीं निकाल सकता। खेती से ही उनका जीवन चलता है। जमीन चली जाएगी तो वे क्या करेंगे। वे अपनी जमीन किसी कंपनी को क्यों देंगे? इसी तरह कौशल पटेल और नारायण पटेल का कहना है कि वे अपने गांवों में बेहद खुश हैं। जमीन से उपज भी अच्छी-खासी है। कंपनी ने धोखे से उनकी जमीनें हथियाने की साजिश की है। घासीराम सिदार का कहना है कि वे गांव की सारी जमीनें सरकार प्राइवेट कंपनी को दे देगी
तो हजारों लोग कहां जाएंगे। खेतिहर जमीन बर्बाद होने से कई परिवार भी बर्बाद हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क से होगा आवागमन
गुड़ेली से अंदर जाते ही पीएमजीएसवाय रोड शुरू हो जाती है। पांचों गांवों में खनन और क्रशिंग के बाद गिट्टी निकालने के लिए बंजारी होकर रोड का इस्तेमाल किया जाएगा। एक गांव से से दूसरे गांव के बीच संकरी पीएमजीएसवाय सडक़ें हैं। 700 टन प्रति घंटे की क्षमता वाले क्रशर से रोज 200-300 गाड़ी चूना
पत्थर परिवहन होगा। ये सारी गाडिय़ां पीएमजीएसवाय की सडक़ों पर दौड़ेंगी। अनुमान लगा सकते हैं कि सडक़ों और उन पर चलने वाले हजारों ग्रामीणों का क्या होगा। जहा खदान प्रस्तावित है वह जगह दो फसली और सिचिंत जमीन खेती पर आश्रित इन पांचों गांवों में जितनी भी जमीन है, सभी दो फसली है। कलमा बैराज की वजह से लात नाला में हमेशा पानी रहता है। यहां पंप लगाकर खेतों तक सिंचाई के लिए पाईपलाइन बिछाई गई है। पानी की सहज उपलब्धता के कारण वे दो फसलें लेते हैं। प्रति एकड़ करीब 35 क्विंटल धान की पैदावार होती है। सारंगढ़ के दूसरे हिस्सों के मुकाबले इन गांवों में दोगुनी उपज है। अभी इन गांवों में प्रति एकड़ 30-40 लाख रुपए का रेट है। इसलिए कोई भी अपनी जमीन नहीं छोडऩा चाहता।