
किसान के नाम से दूसरे बैंक से निकाल लिए 7.91 लाख रुपए, समिति के कंप्यूटर ऑपरेटर पर बर्खास्तगी की कार्रवाई
जिला सहकारी बैंक के देवभोग ब्रांच अधीन आने वाली दीवानमुड़ा सहकारी समिति के कंप्यूटर ऑपरेटर ऋतिक निधि को सहायक पंजीयक सहकारिता के निर्देश पर प्राधिकृत अधिकारी क्षीरसागर बीसी ने बर्खास्त कर दिया गया है. आरोप है कि इसी समिति के किसान सदस्य खेमा पांडे, जिनका खाता देवभोग ब्रांच में था. लेकिन गोहरापदर ब्रांच से उनके नाम से 7.91 लाख का फर्जी आहरण नियम विरुद्ध विड्रॉल के सहारे किया गया था. यह कार्रवाई सहायक पंजीयक द्वारा गठित जांच कमेटी के रिपोर्ट की आधार पर की गई. जांच कमेटी के समक्ष ऋतिक निधि ने आहरण की बात अपने कथन में स्वीकार किया था. लेकिन इस मामले में अन्य जिम्मेदारों पर भी कार्रवाई की जानी थी. यह मामला किसान के खाते से केवल बोगस आहरण का नहीं था, बल्कि धान खरीदी में हुई गड़बड़ी से भी यह जुड़ा था. क्योंकि इस समिति में 2880 बोरा धान की कमी पाई गई थी. बोरे भी गायब थे. यह धान करीब 32 लाख रुपए का था. जिस तरह किसान के खाते में रकम डालकर आहरण के लिए जिम्मेदार अफसर बच निकले, उसी तरह 2880 बोरा धान की भरपाई कर अन्य जिम्मेदारों को बचाने का प्रयास किया गया.
धान खरीदी योजना के रिकॉर्ड के मुताबिक दीवानमुडा खरीदी केंद्र में किसान खेमा पांडे द्वारा जनवरी माह में 255.20 क्विंटल धान का विक्रय किया गया. किसान के देवभोग सहकारी बैंक स्थित खाते में जनवरी माह में 7.91 लाख जमा हो गया. अप्रैल माह में कृषक जब देवभोग बैंक रुपए निकालने पहुंचा तो उसे पता चला कि राशि 14 फरवरी से 28 फरवरी के बीच नियम विरुद्ध गोहरा पदर ब्रांच से विड्रॉल के माध्यम से निकल गया. कृषक ने अप्रैल माह में कलेक्टर जन दर्शन में इसकी शिकायत की,पर जांच नहीं हुई. 31 मई माह में खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया. सहकारिता विभाग से लेकर जिला सहकारी बैंक ने अपने-अपने स्तर पर जांच शुरू कर दी. इसी बीच गोहरापदर बैंक के सहायक लेखापाल दीपराज मसीह ने किसान खेमा पांडे के खाते में 16, 17 और 18 जून को 5,91,000 रुपए जमा कराया गया. जबकि तत्कालीन बैंक मैनेजर न्यानसिंह ठाकुर ने 2 लाख जमा कर दिया गया. जिसे 10 से 12 दिनों बाद किसान ने अपने खाते से आहरण कर लिया.
इस मामले में जवाबदार अफसरों पर भी कार्रवाई होनी थी. इसे लेकर रायपुर मुख्यालय स्थित जिला सहकारी बैंक सीईओ अपेक्षा व्यास ने कहा कि इस मामले को जिला स्तर पर नोडल और सहायक पंजीयक देख रहे हैं. प्रतिवेदन आने पर कार्रवाई होगी. जबकि बैंक के नोडल अधिकारी शिवेश मिश्रा ने कहा कि बोगस आहरण की जानकारी मिलने के बाद मुख्यालय के निर्देश के आधार पर राशि आहरण के लिए जिम्मेदार गौहरापदर तत्कालीन बैंक मैनेजर और सहायक लेखपाल से भरपाई कराई गई. रकम किसान को मिल गई. अब उच्च कार्यालय से जैसा निर्देश मिलेगा वैसे आगे कार्रवाई की जाएगी.
केवल कम्यूटर ऑपरेटर पर ही कार्रवाई, कर्मियों के वेतन भुगतान और खर्च रोकने पर संदेह
इस मामले में सहकारी समिति के जिम्मेदार लोगों पर भी कार्रवाई होनी थी. इस पर सहकारिता विभाग के सहायक पंजीयक और असिस्टेंट कमिश्नर सहकारिता माहेश्वरी तिवारी ने कहा कि किसान के राशि आहरण में ऑपरेट की भूमिका पाई गई थी. समिति के प्राधिकृत और कर्मचारी में समन्वय की कमी के कारण, कर्मचारी भुगतान और अन्य भुगतान रुका होगा. जल्द समाधान निकलवाते हैं. अभी तक जांच में किसी भी प्रकार से धान खरीदी में गड़बड़ी की कोई बात सामने नहीं आई है.
जाच में इन बिंदुओं को छोड़ दिया गया
- किसान के खाते से फर्जी आहरण के लिए जिम्मेदार तत्कालीन बैंक मैनेजर एवं लेखा सहायक के खिलाफ पर्याप्त प्रमाण के बावजूद विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की गई. उच्च स्तरीय जांच हुई तो खेमा पांडे जैसे दर्जनों किसानों के नाम बोगस खरीदी बिक्री में शामिल लोगों से मिलीभगत कर 1 करोड़ से ज्यादा के भुगतान का खुलासा हो सकता है.
- दीवानमुड़ा समिति कर्मचारियों का वेतन 11 माह से रोका गया, खरीदी और रखरखाव के लिए मिले लाखों रुपए के व्यय पर रोक लगाई गई है. वजह भले अफसरों को पता नहीं पर निचले स्तर पर मामला गड़बड़ी से जुड़ा हो सकता है. इस बिंदु को भी जांच में छोड़ दिया गया है.
- अंतिम भौतिक सत्यापन रिपोर्ट की माने तो दीवानमुड़ा खरीदी केंद्र में बीते सीजन में हुई खरीदी के अंतिम में 2880 बोरा धान बोरों समेत कम पा गए. यह करीब 32 लाख का 1120 क्विंटल धान था. बैंक से ऑपरेटर द्वारा आहरित रकम इसी गड़बड़ी का हिस्सा हो सकता था. जब धान बोरों के साथ ही गायब थे तो रकम और शॉर्टेज धान की भरपाई कैसे कर दी गई. यह भी जांच में शामिल नहीं किया गया.