
शक्ति जिले के साराडीह बैराज में अवैध रेत उत्खनन चरम पर, सरपंच पर अवैध वसूली के आरोप, प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल

शक्ति, छत्तीसगढ़।
साराडीह बैराज क्षेत्र में अवैध रेत उत्खनन इन दिनों अपने चरम पर है। बिना किसी वैधानिक अनुमति के दिन-रात ट्रैक्टरों से रेत की ढुलाई की जा रही है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकार की कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस काले कारोबार में जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत भी शामिल है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, क्षेत्र के एक सरपंच द्वारा प्रतिट्रैक्टर ₹300 की दर से अवैध वसूली की जा रही है। यह रकम कथित रूप से रेत खनन करने वालों से ली जा रही है, जिससे यह अवैध गतिविधि खुलेआम संचालित हो रही है। इस कथित अवैध वसूली को लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्याप्त है। उनका कहना है कि सरपंच की यह मनमानी न केवल गैरकानूनी है, बल्कि क्षेत्र के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है।
स्थानीय निवासियों ने बताया कि रेत के इस अंधाधुंध दोहन से नदियों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है और जलस्तर में भी गिरावट आ रही है। साथ ही बैराज की सुरक्षा पर भी संकट मंडराने लगा है। रेत की अवैध ढुलाई के कारण ग्रामीण सड़कों की हालत भी दयनीय हो चुकी है, जिससे आमजन की आवाजाही प्रभावित हो रही है।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि बार-बार मौखिक शिकायतों के बावजूद प्रशासन और खनिज विभाग द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इससे अधिकारियों की भूमिका पर भी संदेह जताया जा रहा है। यह स्थिति भाजपा सरकार की छवि को भी नुकसान पहुंचा रही है, जो अपने ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ के दावे के साथ सत्ता में आई थी।
ग्रामीणों की मांग
इस विषय मे नाम ना छापने की शर्त पर बताया की उन्होंने पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री, जिला कलेक्टर और खनिज विभाग से इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। साथ ही उन्होंने कहा है कि यदि जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन करने पर विवश होंगे। बताना जरुरी है की यहाँ पर प्रशासन की चुप्पी बनी रहस्यमयी बनी हुई है।
अब तक प्रशासन की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है और ना ही रेत माफियायों पर कोई कार्यवाही हो रही है, जिससे संदेह और गहराता जा रहा है। यदि समय रहते इस अवैध कारोबार पर लगाम नहीं लगाई गई, तो न सिर्फ पर्यावरणीय संकट और बढ़ेगा, बल्किशासन-प्रशासन की साख को भी गहरा धक्का लगेगा।