दशहरा पर्व पर सारंगढ़ में आज होगा प्रसिद्ध “गढ़ विच्छेदन”, राजपरिवार ने
किया तैयारी पूर्ण,
सारंगढ़ मे मनाया जाता है प्रसिद्ध गढ़-उत्सव,
नवीन जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ की सबसे दुर्लभ उत्सव है गढ़ उत्सव,
जुटेगी 20 हजार से अधिक की भीड़,
गढ़ जीतने भाग्य आजमायेगे 50 प्रतिभागी,
विजेता को मिलता है वीर की पदवी,
दो सौ साल से भी अधिक पुरानी है गढ़-विच्छेन की परंपरा,
सारंगढ़,
नवीन जिला बना सांरगढ़-बिलाईगढ़ के रियासतकालीन परंपारिक गढ़-उत्सव का आयोजन आज विजयदशमी पर्व पर खेलभांठा स्थित गढ़ स्थल पर होगा। 200 से भी अधिक वर्षो से संपन्न होते आ रहा इस गढ़ विच्छेदन खेल में 50 से अधिक प्रतिभागी भाग लेगें। इस गढ़ उत्सव को आज भी सारंगढ़ राजपरिवार के द्वारा आयोजित किया जा रहा है। लगभग 20 हजार से अधिक की भीड़ यहा पर गढ़ को देखने के लिये उमड़ेगी। गढ़ विच्छेदन होने के तत्काल बाद रावण का पुतला का दहन किया जाता है तथा हजारो की भीड़ सारंगढ़ शहर पहुंचकर मां सम्लेश्वरी और मां काली मंदिर का दर्शन करने के साथ साथ विभिन्न चौक-चौराहो पर विराजे मां दुर्गा का दर्शन करती है। तथा रात्री मे विभिन्न चौक-चौराहो पर आयोजित होने वाले सांस्कृतिक आयोजनो का लुफ्त उठाती है। नवीन जिला बना सारंगढ़ में सबसे
बड़ी समस्या यातायात व्यवस्था और शाम को उमड़ने वाली भीड़ है जिसको लेकर पुलिस प्रशासन की तैयारी नही दिख रही है। शहर मे शाम को आने वाले भीड़ के लिये किसी भी प्रकार का पार्किग की व्यवस्था नही किया गया है।
छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति के इतिहास में उपेक्षित रहने वाला सारंगढ़ अंचल मे दशहरा उत्सव को अनोखे ढ़ंग से मनाया जाता है। यहा पर रियासतकाल से ही विजयदशमी पर्व पर गढ़ विच्छेदन का कार्यक्रम आयोजित किया जाते आ रहा है। यह गढ़
उत्सव लगभग 200 साल से भी पुरानी है। यहा पर मिट्टी के टिले रूपी गढ़ के ऊपर मे सैनिक रूपी रक्षक रहते है वही गढ़ के नीचे मे पानी का गड्ढ़ा रहता है जहा पर प्रतिभागी मिट्टी के टिले को नुकीले औजार से गड्ढा खोदकर ऊपर चढ़ते है जो प्रतिभागी सुरक्षा
प्रहरियो से जहोज्जद कर गढ़ मे चढऩे मे सफल होते है उन्हे गढ़ विजेता का पदवी दिया जाता है। इस गढ़ उत्सव को देखने के लिये आस पास के लगभग 20 हजार से अधिक की भीड़ इस कार्यक्रम को देखने को लिये जुटती है। वही इस उत्सव स्थान पर विशाल मेला लगता है। नवीन जिला बना सारंगढ़-बिलाईगढ़ का यह एक दुर्लभ उत्सव है। पूरे विश्व का सबसे अनोखा गढ़ उत्सव यहा मनाया जाता है। इस गढ़ उत्सव का आयोजन राजपरिवार सारंगढ़ के द्वारा किया जाता है। छत्तीसगढ़ मे मनाये जाने वाले दशहरा उत्सव के विभिन्न परंपराओ के बीच सारंगढ़ अंचल का दशहरा उत्सव अपनी अलग ही पहचान और गौरवगाथा समेटे हुए है। इस दशहरा उत्सव का आयोजन लगभग 200 वर्षो से होते आ रहा हे जिसका आयोजन आज भी राजपरिवार गिरीविलास पैलेस करते आ रहे है। इस गढ़ समारोह मे सारंगढ़ के प्रसिद्ध खेलभांठा स्टेडियम के पास गढ़ बना हुआ है
यह गढ़ लगभग 200 वर्ष पुराना है यह मिट्टी का एक टिला है जिसके सामने में 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होते जाती है जहा पर लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चौड़ी ही रह जाती है जहा पर ऊपर मे पीछे से सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीला से ऊपर मे रहते है वही इस टीला के स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चौड़ा तथा 10 फीट गहरा तालाबनुमा गड्ढा मे पानी भरा रहता है जहा पर से इस गढ़ मे नुकीला हथियार से गड्ढा करके ऊपर चढ़ते है तथा समीप मे सीमारेखा बनी रहती है जिसके अंदर से प्रतिभागी को ऊपर चढऩा रहता है। जिसमे उन्हे ऊपर के सुरक्षा प्रहरियो से लोहा लेना होता है। पूर्व रियासत काल मे यहा की सेना ऊपर मे रहती थी जबकि आजकल ऊपर मे वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते है। इस आयोजन का शुभारंभ सारंगढ़ राजपरिवार के राजा के द्वारा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन मे छोडक़र किया जाता है। तथाn क्षेत्रवासियो को विजयीदशमी पर्व का शुभकामनाये प्रदान करते है। उसके बाद यह प्रसिद्ध गढ़ उत्सव प्रारंभ होता है जहा पर लगभग 40 से 50 प्रतिभागी इस गढ़ मे चढऩा प्रारंभ करते है तथा एक दूसरे का पैर खींच कर विजेता बनने से रोकते है। वही पर जो प्रतिभागी ऊपर के सुरक्षाकर्मी से संघर्ष करके तथा नीचे के पैर खीचने वाले से जीत कर गढ़ पर विजयी प्राप्त करता है उसे सारंगढ़ का वीर की पदवी मिलती है। यह विजेता ही बगल मे स्थापित लगभग 40 फीट ऊंचे रावण को आग के हवाले करता है। तथा विजेता को धोती कुर्ता और 501रू नगद प्रदान किया जाता है। पूर्व रियासतकाल मे गढ़ विच्छेदन मे विजय श्री धारण करने वाले को राजमहल मे सम्मान के साथ राजदरबार मे बिठाया जाता था।
200 वर्ष से भी अधिक पुरानी है यह परंपरा
सारंगढ़ रियासत के द्वारा आयोजित होने वाले विजयदशमी पर्व के दिवस इस गढ़ उत्सव लगभग 200 वर्ष पुरानी है इस बारे मे जानकार बताते है कि रियासत काल मे अपने सैनिको को उत्साहित करने के लिये राजपरिवार के द्वारा सैनिको के बीच मे इस प्रतियोगी का आयोजन किया जाता रहा है जिसमे विजेता सैनिक को वीर की पदवी दी जाती थी तथा राजदरबार मे उसे विशेष स्थान प्रदान किया जाता था। सैनिको के बीच मे स्वस्थ प्रतियोगिता के रूप मे इस गढ़ उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। गढ़ उत्सव देखने वाले को भी वीर कहा जाता है!
सारंगढ़ के इस गढ़ उत्सव की परंपरा मे विजेता को ही पूजा नही जाता है बल्कि इस आयोजन को देखने के लिये शहर के हर घर से युवाओ तथा पुरूषो को जाना अनिवार्य किया गया था। इस कारण से गढ़ विच्छेदन को तथा रावण दहन को देख कर घर वापस आने वाले घर के सदस्यो को घर के महिलाओ के द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है तथा उन्हे सोनपत्ती को दिया जाता है। आधुनिक परिवेश मे यह सोनपत्ती का स्थान अब रूपये ने ले लिया है। इस पूजा अर्चना के बाद घर के पुरूष सदस्य मां काली और मां सम्लेश्वरी का आर्शीवाद लेने मंदिर जाते है जहा पर इस दिन जबरदस्त भींड उपस्थित रहती है।
शांति और समृद्धि का प्रतीक ‘नीलकंठ’
इस उत्सव के शुभांरभ मे राजपरिवार के द्वारा क्षेत्रवासियो को दशहरा पर्व की बधाई देते हुए सारंगढ़ राजपरिवार का राजकीय पक्षी ‘नीलकंठ को खुले गगन मे छोड़ा जाता है जहा पर हजारो की संख्या मे उपस्थित क्षेत्रवासी इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन को काफी शुभ मानते है तथा इस नीलकंठ को पक्षी को प्रणाम करते है।
मां सम्लेश्वरी और मां काली मंदिर में दर्शन करते है श्रद्धालु विजयदशमी यानि दशहरा के दिन शाम को 5 बजे आयोजित होने वाले इस गढ़ उत्सव के बाद पूरी भीड़ सारंगढ़ शहर पहुंचती है जहा पर मेला जैसा माहौल पूरे शहर मे बना रहता है। सारंगढ़ में विभिन्न पंड़ालो मे विराजी मां दुर्गा का दर्शन कर आर्शीवाद लेने के लिये हर पंड़ाल मे भीड़ बनी रहती है वही प्रसिद्ध मां सम्लेश्वरी और मां काली मंदिर में श्रद्धालुओ की भारी भीड़ होती है। यहा पर दशहरा पर्व पर श्रद्धालुओ की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन भी सुरक्षा के व्यापक प्रबंध करता है। वही विभिन्न चौक चौराहो में दशहरा की रात को कई सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जिसके कारण से देर रात से अल-सुबह तक सारंगढ़ में दशहरा पर्व की धूम मची रहती है। कोतरी के गोस्वामी परिवार बनाता है रावण
सारंगढ़ के प्रसिद्ध गढ़ उत्सव में गढ़ विच्छेदन के बाद रावण का पुतला का दहन किया जाता है। यह रावण का पुतला को सारंगढ़ राजपरिवार के करीबी और कोतरी के गोस्वामी परिवार के द्वारा तैयार किया जाता है। लगभग 40 फीट ऊंचे रावण का पुतला के लिये गोस्वामी परिवार अपने मजदूरो के माध्यम से लगभग 15 दिन पहले से ही तैयारी प्रारंभ करता है। विभिन्न पटाखो और आर्कषक रंगो का उपयोग करते हुए गोस्वामी परिवार हर वर्ष रावण का पुतला तैयार करवाकर उसे गढ़ के बगल में स्थापित करता है। इस वर्ष में रावण का पुतला निमार्ण का कार्य अंतिम चरण मे गतिमान है। बताया जा रहा है कि रावण दहन की परंपरा 1978 से शुरू
किया गया है।
बाईस राईडर्स फिर करेगें जमकर मनमानी?
सारंगढ़ में हर वर्ष संपन्न होने वाला इस गढ़ उत्सव के लिये जिस प्रकार की भीड़ nसारंगढ़ में उमड़ती है उससे कानून और व्यवस्था की स्थिति भगवान भरोसे हो जाती है। ऐसा ही नजारा कर दशहरा उत्सव को देखने को फिर मिल सकता है। यहा बाईक राईडर्स ग्रुप बनाकर मस्ती करते हुए शहर मे प्रेशर हार्न बजाकर लोगो को परेशान कर रहे थे। विशेषकर बच्चे और महिलाओ को परेशान करते हुए बाईक राईडर्स अपनी मनमानी पर उतारू हो जाते है। शहर मे चौक-चौराहो पर भारी भीड़ के बीच बाईक ग्रुप अपना बाईक घुसाकर प्रेशर हार्न बजाकर लोगो को परेशान करने से बाज नही आते है। गत वर्ष पुलिस की सुस्ती का फायदा ये बाईकर्स ग्रुप ने जमकर उठाया और हंगामा करते हुए लोगो को परेशान किया। इससे सारंगढ़ मे बाहर से आने वाले श्रद्धालुओ के बीच अच्छा संदेश नही गया था। देखते है इस बार पुलिस प्रशासन बाईक राईडर्स पर कोई लगाम कस पाता है या नही? फिर लगेगा लंबा जाम, प्रशासन नींद में गाफिल?
सारंगढ़ में दशहरा पर्व पर फिर से लंबा जाम लगने की संभावना जताई जा रही है। यहा पर एक भी स्थल को पार्किग के लिये चिन्हित नही किया गया है। यहा पर गढ़-उत्सव होने के बाद शहर मेँ ट्रेफिक जाम हो जाता है। विशेषकर राजमहल सारंगढ़ जाने के लिये वीआईपी लोगो को चारपहिया वाहन तुर्की तालाब पार से राजापारा की ओर जाती है किन्तु संकरा रोड़ होने के कारण से आवागमन बाधित हो जाता है। इसके कारण से चारपहिया वाहनो का लंबा रेला दशहरा के दिन देखने को मिलता है। वही हजारो की संख्या में श्रद्धांलु यहा पर पैदल भ्रमण करके दशहरा मेला का आनंद उठाते है किन्तु चारपहिया वाहनो के रेलमपेल और पार्किग के लिये कोई भी स्थान निर्धारित नही करने के साथ-साथ शहर के भीतर एक भी रोड़ को चारपहिया वाहनो के लिये बैन नही किये जाने के कारण से लगभग हर रोड़ पर ट्रेफिक जाम की स्थिति बन सकती है। मां सम्लेश्वरी मंदिर और मां काली मंदिर दर्शन के लिये जाने वाले श्रद्धालुओ का चारपहिया वाहन को जवाहर भवन, पुराना दैनिक हटरी, कृषि उपज मंडी आदि स्थानो पर रखने की व्यवस्था के बारे मे प्रशासन ने कुछ भी प्लान तैयार नही किया है इस कारण से फिर से आज शहर में ट्रेफिक को लेकर चिल्लम-पो होने की आसार दिख रहे है।