पूछता है सारंगढरायगढ़

सिर्फ सारंगढ़ में ही नही रायगढ़ का हाल भी है बेहाल…गंदगी से परेशान लोग…..

सिर्फ सारंगढ़ में ही नही रायगढ़ का हाल भी है बेहाल...गंदगी से परेशान लोग

तीन सालों में न तो कचरे की मात्रा में अंतर आया और न ही गंदे पानी की मात्रा में

  • सीवेज वाटर में 2 एमएलडी का गैप, रोजाना 30 टन कचरा भी गायब
  • एनजीटी की ज्वाइंट कमेटी ने नगर निगम क्षेत्र का किया था दौरा, दोनों एसटीपी के अलावा सॉलिड वेस्ट कलेक्शन की भी ली थी जानकारी, सौंपी रिपोर्ट में बताई असलियत

 

सफाई के नाम पर जिस प्रकार से सारंगढ़ में बदतर स्थिति है वह बेहद चिंतनीय है। जिला बनने के बाद सफाई व्यवस्था सुधरने के बजाए दिनों दिन खराब होती जा रही है। सारंगढ़ के नालियों की बात करें तो हालत यह है कि तीन साल होने का आ गए लेकिन यहां पर नालियों के ढक्कन नही खोले गए हैं जिसके कारण बडी बिमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है। सारंगढ़ के मातृ जिला रायगढ़ का भी वही हाल है वहां पर भी हाल बेहाल है जानिए रायगढ़ की खबर…..

जनता को ऐसा दिखाया जाता है कि शहर का पूरा कचरा निगम एकत्र कर लेता है, इसको एसएलआरएम सेंटर भेज दिया जाता है, गंदा पानी एसटीपी में ले जाकर ट्रीटमेंट के बाद नदी में छोड़ा जाता है। लेकिन ऐसा है नहीं। अब तो एनजीटी की ज्वाइंट कमेटी ने भी अपनी निरीक्षण रिपोर्ट दे दी है। इसमें कहा गया है कि जनसंख्या के हिसाब से ठोस अपशिष्ट 63 टन रोज निकलेगा लेकिन 33 टन ही बताया जाता है। सीवेज वाटर में भी दो एमएलडी का गैप है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर केस दायर किया गया था। एनजीटी ने सभी राज्यों की रिपोर्टिंग शुरू की। इसके पहले तक किसी को ठोस कचरे और सीवेज वाटर ट्रीटमेंट की चिंता ही नहीं थी। रायगढ़ नगर निगम में कचरा हो या गंदा पानी, सबकुछ केलो नदी में बहाया जा रहा था या फिर रामपुर ट्रेंचिंग ग्राउंड में जमा किया जाता था।

एनजीटी से डंडा पड़ा तो सब जागे और प्लानिंग शुरू हुई। घरेलू कचरे को एकत्र करने के लिए 12 एसएलआरएम सेंटर बनाए गए। स्व सहायता समूहों की महिलाओं के जरिए घरों से कचरा इकट्ठा कर इन सेंटरों में सेग्रीगेशन होना था। इसी तरह शहर के नालों-नालियों का गंदा पानी दो एसटीपी में भेजा जाना है, वहां से ट्रीटमेंट के बाद केलो नदी में छोड़ा जाना है। समीक्षा के दौरान एनजीटी ने चीफ सेक्रेटरी छग से शपथ पत्र मांगा था। इसमें जो आंकड़े दिए गए, उससे एनजीटी हैरान रह गया। तीन सालों में न तो कचरे की मात्रा में अंतर आया और न ही गंदे पानी की मात्रा में। पूरा कचरा शतप्रतिशत निराकृत हो गया। पूरा गंदा पानी एसटीपी में साफ करके केलो नदी में डालने का दावा किया गया। इसके बाद एनजीटी ने ज्वाइंट कमेटी बनाकर निरीक्षण करने को कहा था। रायगढ़ आई टीम ने एसटीपी, एसएलआरएम सेंटर समेत कुछ अहम स्थानों का दौरा किया था। निरीक्षण रिपोर्ट एनजीटी में सौंपी गई है। इसमें कहा गया है कि रायगढ़ नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या 1.66 लाख बताई गई। 12 एसएलआरएम सेंटरों में 266 महिलाओं के जरिए कचरा कलेक्शन और कम्पोस्ट बनाने का काम होता है। 48 वार्ड में 33.56 टन प्रतिदिन सॉलिड वेस्ट निकलता है। इसमें 19.94 टन गीला कचरा और 13.62 सूखा कचरा होता है। निगम का दावा है कि 95 प्रश सोर्स सेग्रीगेशन एंड 100 प्रश वेस्ट कलेक्शन होता है। 133 ट्राइसाइकिल और 8 मिनी टिप्पर से कचरा परिवहन होता है। कमेटी ने पाया कि जनसंख्या के हिसाब से शहर में सॉलिड वेस्ट 63.08 टन निकलना चाहिए लेकिन 33.56 टन बताया जा रहा है। करीब 29.52 टन का गैप है। मतलब साफ है कि इतना कचरा बाहर डंप हो रहा है। इसी तरह एसटीपी में 32 एमएलडी इंस्टाल्ड कैपेसिटी है। अनुमानित सीवेज वाटर 17.93 एमएलडी है लेकिन दोनों प्लांटों में 16 एमएलडी ही पहुंच रहा है। करीब दो एमएलडी का गैप यहां भी है।

फ्लो मीटर और स्काडा मिला बंद 

ज्वाइंट कमेटी ने नगर निगम के बांजीनपाली और अतरमुड़ा के एसटीपी का निरीक्षण किया था। इस दौरान फ्लो मीटर और सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन सिस्टम भी बंद मिला। ऑनलाइन कंटीन्यूअस इफ्लूएंट मॉनिटर सिस्टम तो इंस्टॉल ही नहीं किया गया है। टैंक की तलछटी में जमे कीचड़ के ट्रीटमेंट का कोई डाटा ही नहीं मिला। जबकि प्रति सप्ताह कम से कम 40 किलो कीचड़ निकलता होगा। आश्चर्य की बात यह है कि पूरे महीने में सीवेज वाटर और ट्रीटेड वाटर का आंकड़ा कम हो या ज्यादा, एक जैसा ही रहा।

हर जगह है गैप क्योकि पूरा काम किया ही नहीं

नगर निगम ने केलो नदी में मिल रहे शहर के सभी बड़े गंदे नालों को चिहिनत किया था। इसके बाद टेंडर जारी किया जिसमें इन्वायरो इंफ्रा इंजीनियरिंग ने काम किया। करीब 70 करोड़ रुपए खर्च किए गए लेकिन चार बड़े नाले अब भी छूट गए। केलो नदी को साफ रखने की मंशा कभी नहीं रही क्योंकि काम नगर निगम के अफसरों ने कराया, जिनको रायगढ़ से कोई जुड़ाव नहीं रहा। कचरा कलेक्शन नहीं हो रहा है क्योंकि अभी भी खुले में कचरा डंप हो रहा है। केलो नदी में भी सॉलिड वेस्ट डाला जाता है जिसे रोका नहीं जा सका। नदी अब भी दूषित हो रही है।

 

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