आखिर कब बदलेगी ‘‘रायगढ़ रिफर‘‘ की परिपाटी-
मयूरेश केशरवानी
सारंगढ़। सारंगढ़ में अगर कोई व्यक्ति अस्पताल का चक्कर काटा है तो उसे एक शब्द हमेशा याद रहते हैं जिसे आप और हम सब मिलकर ’’रायगढ़ रिफर‘‘ कहते हैं। बेशक रायगढ़ सारंगढ़ का मातृत्व जिला रहा है और जिला मुख्यालय होने के कारण प्रत्येक आवश्यक चीजों के लिए हमेशा से रायगढ़ पर सारंगढ़ आश्रित रहा है। खासकर चिकित्सकिय आवश्यकताएं ऐसी रही हैं कि मरीज को सारंगढ़ से बाहर ले जाने की बात आती है तो सर्वप्रथम दिमाग में एक ही नाम आता है वह है रायगढ़। जिला बनने के बाद भी सारंगढ़ वासियों को 3 से 4 वर्ष लग जाएंगे स्वयं के कम्प्लीट मेडिकल सेटप होने में। बेशक अभी आधा अधुरा जिला बना है और सभी विभागों को मिलाकर देखेंगे तो शायद 60 प्रतिशत विभागों के सेटप में अभी समय लगेगा। बहरहाल अंचल वासियों के लिए अगर सबसे ज्यादा संवेदनशील कोई विषय है तो वह चिकित्सा ही है क्योंकि जिस प्रकार से दौर चल रहा है। उस दौर में एक बडा वर्ग शराब खोरी के चरम में हैं जो हर तीसरे दिन दुर्घटना का शिकार होकर अस्पताल पहुचता है, जिला बनने के बाद से सड़कों में यातायात का दबाव बढता जा रहा है उसकी वजह से भी दुर्घटना आम होते जा रही। जुआ, सट्टा तो जैसे गरीब घरों के पारिवारिक सदस्य बन चुके हैं। जुआ में हारना, सट्टा में पैसे गंवाना और घर में कलह के साथ अंत में घरेलु हिंसा की घटनाओं के साथ अस्पताल मंे पीडित का दाखिला। कई विषयों को इस विज्ञप्ति में समावेशित करने का उद्देश्य यह है कि चाहे जुआ, सट्टा और शराबखोरी अथवा कोई भी घटनाएं हों। इन घटनाओं की क्रिया के प्रतिक्रियास्वरूप हमे अस्पतालों में आना ही पडता है, लेकिन जब भी आप सारंगढ़ के अस्पताल मंे कदम रखेंगे तो कई बार चंद चिकित्सकों के द्वारा जानबुझकर भी रायगढ़ रिफर जैसी प्रिस्क्रीप्शन पकड़ा दिया जाता है। ऐसा नही है कि सभी चिकित्सकों के द्वारा रायगढ़ रिफर का पर्ची लिखा जाता है, लेकिन फिर भी वर्षोे से यहां एक परिपाटी चली आ रही है जिसमें मरीज के द्वारा थोडा भी ज्यादा सवाल जवाब करने पर तत्काल रायगढ़ रिफर का टिकट काट दिया जाता है। खासकर जब से आयुष्मान कार्ड आदि का चलन आया है और प्राईवेट अस्पतालों में भी कार्ड मान्य हुआ है तब से तो और भी ज्यादा रायगढ़ रिफर के मामले देखने को मिलते हैं। अपने घर के केबिन में प्राईवेट प्रैक्टीस कर मोटी कमाई करने वाले कुछ चिकित्सकों के लिए तो रायगढ़ रिफर का कागज बनाना बेहद आम हो गया है। तीन दिन पुर्व की घटना किसी से छिपी नही है। सारंगढ़ से रिफर की गई महिला के गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई क्योंकि सारंगढ़ से रायगढ़ पहुचने के बाद एमसीएच और मेडिकल कॉलेज के बीच ही भागदौड में महिला की स्थिति बिगड गई। सारंगढ़ में ही महिला कि स्थिति नाजुक थी जिसके कारण रायगढ़ रिफर का कागज उसे पकड़ा दिया गया वहां मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती नही लिया गया और सोनोग्राफी के लिए निजी नर्सिंग होम भेज दिया गया। अंत में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के लापरवाही के चलते गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई। सारंगढ़ अंचल के हजारों ऐसे मामले हैं जो रायगढ़ जाकर भी ठीक नही हुए हैं। इस पीड़ा का हरण कब तक होगा यह तो नही पता लेकिन सारंगढ़ का आम नागरिक होने के नाते इस विज्ञप्ति के माध्यम से अंचल के समस्त चिकित्सकों से निवेदन है कि रायगढ़ रिफर जैसे कागज अगर अति आवश्यक हैं तो बेशक भेजें लेकिन सिर्फ अपने सिर से बला टालने के लिए रायगढ़ रिफर का कागज बनाकर मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ बिल्कुल ना हो इस बात का भी विशेष घ्यान रखें। जिला बन जाने से आने वाले वर्षों में बेशक चिकित्सकीय दृष्टिकोण से सारंगढ़ मजबुत हो जाएगा लेकिन रायगढ़ रिफर की परिपाटी को बदलना अभी से प्रारंभ करना चाहिए। उक्त बातें प्रेस के माध्यम से भाजपा जिला मिडिया प्रभारी एवं वार्ड क्रमांक 4 से जन प्रतिनिधि मयूरेश केशरवानी के द्वारा कही गई।