जिला- सारंगढ़ बिलाईगढ़

तीसरी आंख की पैनी नजर

तीसरी आंख की पैनी नजर

चुनावी डुगडुगी वाला साल में शुरू हो गया रूठने का दौर?

चुनावी साल सामने है और सत्ताधारी दल के सामने सबका साथ वाला मंत्र को लेकर चलने का फरमान के तहत सबको लेकर चलने को बोला गया है। किन्तु सबका विकास वाला लाईन को यहा पर मिटा दिया गया जिसके कारण से रूठने का दौर भी शुरू हो गया है। वैसे तो चुनावी साल मे राजनितिक दलो के सामने कई प्रकार के फूफा जी खड़े हो जाते है जो हर कार्यक्रम में असंतुष्ट ही नजर आते है। ऐसे मे चुनावी बिसात में मोहरे फिट करके मैदान मे उतरने का मंशा बनाने वाले अभी फूंक-फूंक कर कदम रख रहे है। कोई रूठो को मनाने के लिये जुट जा रहा है तो कोई विकास की खीर मे हिस्सा नही मिलने की कहानी बताकर खास लोगो को बरगलाने का काम कर फूफा की श्रेणी में कार्यकर्ताओ को खड़ा कर रहा है। जैसा भी हो अभी चुनावी साल है तो रूठने-मनाने का तो हक कार्यकर्ताओ को मिलता है भाई। वैसे भी जीतने के बाद 4 साल तक कोई पूछता भी नही है इसलिये 5वां साल में सब प्रकार का हथकंड़ा अभी शुरू हो गया है। वैसे भी अब चंद माह ही तो बच गया।

कोरोना के नाम पर पौने दो करोड़ में हिस्सा आधा-आधा?

खेल पुराना है लेकिन भारी-भरकम राशी नया है। बात यहा पर कोरोना काल का इसलिये आया है कि यहा पर कुछ पंचायतो ने शासन से मांग किया कि उनके यहा पर बहुत ज्यादा प्रवासी मजदूर आये थे और उनके रहने-खाने और ठहरने मे बहुत खर्च हुआ है। भले ही बात 2020 के मार्च-अप्रैल-मई की हो और आने वाला मजदूर वापस चल भी दिया और उनके खाने-पीने से लेकर हर काम के लिये जितना खर्च हुआ उससे ज्यादा का बिल भुगतान मूलभूत और 14वां वित्त से हो चुका है किन्तु नया जुगाड़ के तहत कुछ पंचायतो को पौने दो करोड़ का लंबा फंड एक झटके में मिल गया। भयंकर सूखा के बीच आया बाढ़ रूपी पौने दो करोड़ देखकर बाकि पंचायतो की आंखे फटी की फटी रह गई किन्तु तब दर पूछा गया तो बताया कि आधा-आधा मे बात हुआ है। यानि जिस पंचायत मे जो राशी गई है उसका आधा तुरंत ही वापस करना है। ऐसे मे दो रात में पौन करोड़ का नगद जुगाड़ हो गया। नया जिला बना है और भ्रष्टाचार अभी पूरे उफान पर है। एक भी कार्य में आपत्ति या जांच की बात इसलिये नही हो रही है कि कौन सा विभाग का कौन मुखिया जिम्मेदार है? इसकी जानकारी किसी अधिकारी को नही है। किसी विभाग मे अधिकारी नही है और कही है तो दबे हुए है। ऐसे में पौने दो करोड़ की राशी मे कमाई पूछने पर पूरा शतप्रतिशत का उत्तर मुखिया लोग बता रहे है। अब जिला बन तो गया है किन्तु अधिकारी नही दिये है और जिसमे अधिकारी दिये है उनको अधिकार नही दिये है तो ऐसे मे बिगड़ा हुआ क्षेत्र को कैसे सुधारा जायेगा?

चुनावी साल में भी दावेदारो में छाया है सुस्ती?

अंचल में किसी दल मे बहुत ज्यादा कार्यकर्ता और नेता हो गये है जिसके कारण से हर तीसरा नेता पार्टी के प्रति फूफा जी बन गये है किन्तु एक दल मे कार्यकर्ता और पदाधिकारी परेशान है दावेदारो की सुस्ती को लेकर। बताया गया कि दावेदारो में प्रतिस्पर्धा होने से चुनावी साल मे थैली का मुंह खुलता है। पार्टी के कुछ वरिष्ठो को रात्रि भोजन मे चर्चा में आमंत्रित किया जाता है। युवाओ को उनके आयोजनो मे कुछ-कुछ वितरण भी किया जाता है। किन्तु यहा पर इस पार्टी में अभी दावेदार अपना-अपना टिकट फायनल मानकर चल रहे है और चुनावी बरस में भी कार्यकर्ताओ और नेताओ के लिये चवन्नी तक अपने जेब से नही निकाल रहे है। ऐसे में पार्टी के सक्रिय पदाधिकारी और कार्यकर्ता काफी बैचेन है कि आखिर क्या करने से दावेदारो के बीच प्रतिस्पर्धा हो और एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में कुछ-कुछ राशी निकालकर चुनावी बिसात को हरा-भरा करें। देखते है कि दावेदार सुस्ती से बाहर आते है या ऐसे ही सुस्ती मे पूरा सीजन निपटा देगें।

मेला का झमेला में बंद का तड़का?

अंचल का शहरी मेला में बड़ा झमेला होता है। नया जिला बनने के बाद जब इस बरस मेला के लिये आवेदन मिला तो नये-नये अधिकारी इसे हल्के मे लिये और एक पक्ष के निर्देशानुसार अनुमति देने से साफ इंकार करने पर तुले रहे। अब चुनावी साल है और नया जिला बना है ऐसे मे मेला का आवेदन के बाद झमेला शुरू होने वाला था जिसको भांपने मे गलती कर बैठे जिससे ताकत दिखाने का मौका बंद के बहाने मिल गया और स्व-स्फूर्त बंद से जो मैसेज जाना था चला गया और असर चंद घंटे में दिख गया जिसके कारण से तत्काल अनुमति का फरमान जारी हो गया। अब एक पक्ष परेशान इस बात से हो गया कि इतना सोर्स लगाने के बाद भी आखिर अनुमति कैसे मिल गया? अरे भाई बंद का तड़का का भी कोई महत्व है। फिर पहले साहेब लोग 50 किलोमीटर दूर बैठते थे इस कारण से जो वहा जाकर बता दे वही फायनल लगता था किन्तु सितंबर से साहब लोग यही बैठने लगे है और सही-गलत को सामने मे देख रहे है। किन्तु इतने मे ही मेला का झमेला खत्म नही हुआ है अभी दावा-आपत्ति और राजनिति का मसाला मेला में जमकर डाला जायेगा। खैर देखते है कि मेला में अभी कितना झमेला आना बाकि है।

तीन आसान सवाल

1. किस अधिकारी को सीजन खत्म होने के ठीक पहले बड़े वाहनो में जीपीएस लगाने का नियम याद आया?

2.ग्रैंड ओल्ड पार्टी के कौन-कौन नेता हाल-फिलहाल नया गठबंधन बनाये है?

3.कौन-कौन सोसायटी में कितने-कितने किसानो के नाम पर फिर से कर्जा चढ़ाया गया है?

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