रूढ़िवादी सोच को तोड़ दो बेटियां बनीं मिसाल: पिता को कंधा देकर किया अंतिम संस्कार, कहा- ‘पापा हमें बेटे मानते थे’
मनेंद्रगढ़: शहर में एक भावुक और साहसिक घटना ने समाज में बेटियों की भूमिका को नई परिभाषा दी है। आम तौर पर यह मान्यता है कि पुत्र ही अपने पिता को मुखाग्नि दे सकता है, लेकिन नदी पार क्षेत्र के मनीष रायकवार परिवार की बेटियों ने इस रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। रविवार, 4 नवंबर को मनेंद्रगढ़ के सुरभि पार्क के पास 50 वर्षीय मनीष रायकवार का निधन हो गया। परिवार के साथ उनका मजबूत रिश्ता होने के कारण उनकी दोनों बेटियां, मनस्वी रायकवार और मान्यता रायकवार, ने खुद अपने पिता की अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया।
सबसे छोटी बेटी मान्यता, जो बेमेतरा में खेती की पढ़ाई कर रही हैं, ने पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही तुरंत घर की ओर रुख किया। सोमवार, 5 नवंबर को मनीष रायकवार के अंतिम संस्कार में दोनों बेटियों ने न केवल कंधा देकर पिता की अर्थी को उठाया बल्कि मुक्तिधाम में मुखाग्नि देकर अपनी जिम्मेदारी निभाई। इस साहसी कदम से उन्होंने यह संदेश दिया कि बेटे और बेटियों में कोई अंतर नहीं है और बेटियां भी अपने पिता के प्रति वही आदर और कर्तव्य निभा सकती हैं।
श्मशान घाट पर यह भावुक दृश्य देखकर उपस्थित लोगों की आंखें नम हो गईं। मान्यता और मनस्वी ने समाज की परंपरागत सोच को चुनौती देते हुए साबित किया कि बेटियां भी बेटे का फर्ज निभाने में सक्षम हैं। यह घटना न सिर्फ मनीष रायकवार के परिवार के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन गई।