जिला- सारंगढ़ बिलाईगढ़

सुप्रीम कोर्ट का आदेश छ.ग. में दो महीने के अंदर भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण का करे गठन सरिया के एक किसान ने पलटवाया हाईकोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट का आदेश छ.ग. में दो महीने के अंदर भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण का करे गठन सरिया के एक किसान ने पलटवाया हाईकोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट का आदेश छ.ग. में दो महीने के अंदर भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण का करे गठन सरिया के एक किसान ने पलटवाया हाईकोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट में की अपील, वर्षों से लम्बित भू-अर्जन प्राधिकरण स्थापित करने का आदेश

सारंगढ़ टाईम्स न्यूज/सारंगढ़,
बहुत अजीब सी बात है कि छग में भूअर्जन के प्रकरणों में विवाद की स्थिति बनने पर प्रभावित व्यक्ति के लिए कोई विशेष प्राधिकरण है ही नहीं। जो एसडीएम ने तय कर दिया, उसको सही साबित करने में पूरा प्रशासन लग जाता है। इतने बड़े विषय पर सरिया के एक किसान ने हाईकोर्ट में अपील की थी जो खारिज हो गई, लेकिन उसने सुप्रीम कोर्ट में मुद्दे को उठाया जिसमें सर्वोच्च अदालत ने चीफ सेक्रेटरी को दो हीने के अंदर प्राधिकरण गठन करने का आदेश दिया है। यह बेहद रोचक मामला है। सरिया तहसील के बरगांव निवासी बाबूलाल ने महानदी पर बने जल संसाधन विभाग के कलमा बैराज को लेकर एक जनहित याचिका लगाई थी। उसने अदालत से मांग की थी कि प्रदेश में भूमि अधिग्रहण और
पुनव्र्यवस्थापन प्राधिकरण के गठन और रिक्त पदों पर नियुक्ति करने का आदेश दिया जाए। पद रिक्त रखने वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग भी की गई थी। लेकिन सही तरीके से अपना पक्ष नहीं रख पाने के कारण 21 जून 2024 को याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद बाबूलाल ने सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर अपील की। देश की सर्वोच्च
अदालत ने 14 जुलाई को इसकी सुनवाई की। अदालत ने छग के चीफ सेक्रेटरी को आदेश दिया कि दो महीने के अंदर भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण का गठन किया जाए। ऐसा न कर पाने पर कार्रवाई होगी। यह एक महत्वपूर्ण आदेश है

क्योंकि छग में ऐसा कोई प्राधिकरण ही नहीं है जिसमें भूअर्जन प्रक्रिया में कोई गलती पाए जाने पर भूमि स्वामी अपील कर सके। इस वजह से ऐसे सारे मामले सीधे हाईकोर्ट में दायर होते हैं। हाईकोर्ट में भूअर्जन से जुड़े लंबित प्रकरणों की लंबी सूची है।

प्राधिकरण में बात रखना होगा आसान

प्राधिकरण का गठन होने के बाद किसी भी भूमि स्वामी को भूअर्जन प्रक्रिया में गलती होने पर आवाज उठाने के लिए एक मंच मिलेगा। अदालत पर भी बोझ कम होगा। भूअर्जन में हो रही गड़बडिय़ों की जानकारी सरकार को प्राधिकरण के जरिए आसानी से मिलेगी जो जिला स्तर पर ही दब जाती हैं।

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