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सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर किया शासकीय जमीन का फर्जीवाड़ा, राजस्व विभाग ने मिली भगत करने वाले पटवारी को ही दिए जांच के आदेश…

सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर किया शासकीय जमीन का फर्जीवाड़ा, राजस्व विभाग ने मिली भगत करने वाले पटवारी को ही दिए जांच के आदेश…

सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर किया शासकीय जमीन का फर्जीवाड़ा, राजस्व विभाग ने मिली भगत करने वाले पटवारी को ही दिए जांच के आदेश…

महासमुंद। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में शासकीय जमीन की अवैध खरीद-फरोख्त मामले ने तूल पकड़ लिया है. इस प्रकरण में दो शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, वहीं मामले में आरोपित पटवारी को ही जांच समिति में शामिल कर दिया गया है, जिससे प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं.

बता दें, गौरव पथ से सटे वन विद्यालय के लिए आरक्षित जमीन (खसरा नंबर 102/4), कुल 1898 वर्गफुट को भू-माफिया, ज़मीन दलाल, पटवारी और दो शिक्षकों ने मिलकर केवल ₹100 के स्टांप पेपर पर नोटरी के माध्यम से फर्जी दस्तावेज बनाकर 40 लाख रुपये में खरीद-फरोख्त कर दी.

इस खुलासे के बाद जिला शिक्षा अधिकारी मोहन राव सावंत ने मोंगरापाली शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य विकास साहू (व्याख्याता) और ग्राम साराडीह प्राथमिक शाला की सहायक शिक्षिका भारती चंद्राकर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. नोटिस में कहा गया है कि शासकीय कर्मचारी होने के बावजूद सरकारी जंगल क्षेत्र की भूमि पर दुकान निर्माण करना गंभीर लापरवाही है. तीन दिवस में जवाब प्रस्तुत न करने पर उच्च स्तरीय कार्रवाई की चेतावनी दी गई.

आरोपी पटवारी को जांच समिति में रखा गया

शासकीय भूमि के इस गड़बड़ी की जांच के लिए एसडीएम ने पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसमें दो राजस्व निरीक्षक और तीन पटवारी शामिल हैं. हैरानी की बात यह है कि जिन पर आरोप है, उन्हीं में से एक हल्का 42 के पटवारी खम्मनलाल साहू को समिति में रखा गया है.

खम्मनलाल साहू ने ही जमीन दलाल कृष्णा कुमार साहू, पटवारी अरविंद चंद्राकर, शिक्षिका भारती चंद्राकर और शिक्षक विकास साहू की मांग पर शासकीय जमीन का नजरी नक्शा बनाकर दिया था. बावजूद इसके, उन पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई, उल्टा उन्हीं को जांच सौंप दी गई.

दुकान तोड़ी नहीं, सिर्फ छड़ निकाल ले गए

प्रशासनिक दबाव के चलते ज़मीन दलाल और पटवारी ने दुकान तोड़ने का दिखावा किया, लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्होंने सिर्फ छत का लेंटर तोड़ा और उसमें लगा महंगा सरिया निकाल कर ले गए. शेष निर्माण अब भी ज्यों का त्यों खड़ा है.

वन विभाग और जिला प्रशासन ने अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. प्रशासन की इस लापरवाही से भू-माफिया और ज़मीन दलालों को खुलेआम शासकीय भूमि पर कब्जा करने का हौसला मिलता दिख रहा है.

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