जिला- सारंगढ़ बिलाईगढ़

सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला के गुड़ेली-टिमरलगा अंचल “भीषण प्रदूषण” के चपेट में! अंचल में तापमान कम होने के बाद अब डस्ट का कोहरा? दमा और अस्थमा सहित सांस की बिमारी से ग्रस्त है क्षेत्रवासी?

सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला के गुड़ेली-टिमरलगा अंचल “भीषण प्रदूषण” के चपेट में! अंचल में तापमान कम होने के बाद अब डस्ट का कोहरा? दमा और अस्थमा सहित सांस की बिमारी से ग्रस्त है क्षेत्रवासी?

सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला के गुड़ेली-टिमरलगा अंचल “भीषण प्रदूषण” के चपेट में! अंचल में तापमान कम होने के बाद अब डस्ट का कोहरा? दमा और अस्थमा सहित सांस की बिमारी से ग्रस्त है क्षेत्रवासी?

पर्यावरण के नियम-कानून का कागजो पर
पालन?
भाग-1

सारंगढ़ टाईम्स न्यूज/सारंगढ़,
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का प्रसिद्ध गौण खनिज क्षेत्र गुड़ेली-टिमरलगा अंचल भीषण प्रदूषण की चपेट में है। यहा पर अवैध उत्खनन, पर्यावरणीय नियमो को ठेंगा दिखाते क्रेशर उद्योग और मनमानी पर उतारू चूना भट्‌ठा के संगठित मनमानी से यहा की आबोहवा जहरीली हो गई है। सांस लेने के लिये शुद्ध हवा के स्थान पर बिमारी भरा हवा से क्षेत्र मे अस्थमा/दमा के मरीजो मे भारी वृद्धि हो रही है फिर भी प्रशासन आंख मूंद कर बैठा हुआ है। स्थित इतनी खतरनाक होते जा रही है कि प्रदूषण के कारण से डस्ट का धूंध छा जा रहा है। करोड़ो रूपये का राजस्व देने गुड़ेली-टिमरलगा के गौण खनिज के उद्योगो के कारण से यहा पर हवा जहरीली होते जा रही है। इस कारण से इस अंचल में अधिकांश घरो मे दमा के मरीजो की संख्या लगातार बढ़ रही है। खतरनाक होते प्रदूषण के बीच जीवन जीने के लिये मजबूर गुड़ेली-टिमरलगा के हजारो मजदूर परिवार जानते हुए भी जहरीली हवा का सांस लेते है क्योकि प्रशासन आंख मूंदकर बैठा
हुआ है। सारंगढ़ अंचल के गुड़ेली-टिमरलगा में इस बदहाल प्रदूषण की समस्या का पहला कारण अवैध रूप से उत्खनन है यहा पर चंद व्यक्तियो की बड़ी माफिया टीम है जो कि यहा पर अवैध रूप से उत्खनन का कार्य को संगठित गिरोह की भांति करवाती है। पुष्पाराज और केजीएफ जैसी बालीवुड फिल्मो की भांति यहा पर दिन-रात अवैध उत्खनन और अवैध बारूद विस्फोट का सिलसिला प्रशासन के संरक्षण मे बदस्तूर जारी है। यहा पर माफियाओ की टोली सरकारी अधिकारियो की जी-हजूरी मे लगा रहता है तथा चढ़ावा देकर वैध-अवैध रूप से उत्खनन का कार्य को अमली जामा पहना रहे है।

यहा पर प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या के रूप मे अवैध खदानो मे होने वाली उत्खनन के बाद इन अवैध उत्खनन का क्रेशरो मे खपाना भी है। यहा पर लगभग 75 क्रेशर उद्योग संचालित है जो कि शासन के नियम और कानून को अपनी जेब में भरने का दावा करते हुए मनमानी करने पर उतारू हो गये है। क्षेत्रवासियो के बताये अनुसार गुड़ेली-टिमरलगा का क्रेशर प्लांट मे मनमानी की सारे हदे पार हो चुकी है तथा क्रेशर संचालक अवैध रूप से उत्खनन होने वाले पत्थरो को अपने क्रेशर मे खपाकर बिना रायल्टी पर्ची के माल को रायगढ़ के उद्योगो मे खपाने में बिना रायल्टी और ओव्हरलोड़ के खपाने मे जुटे रहते है। बताया जा रहा है कि क्रेशर संचालको की मनमानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक भी क्रेशर में पानी की छिड़काव के लिये स्प्रिंकलर तक नही है। मुख्य सड़क पर पानी का छिड़काव तक नही हो रहा है। जिसके कारण से डस्ट की मोटी चादर ओढ़े सारंगढ़ का नेशनल हाईवे सड़क के ऊपर धूंध की मोटी लेयर से कोहरा बन जा रहा है। अवैध उत्खनन से शुरू हुआ प्रदूषण की कहानी क्रेशर होते हुए नेशनल हाईवे रोड़ को प्रदूषण के रूप मे अपने चपेट मे ले लिया है। यहा पर दमा और अस्थमा की बिमारी को लेकर गत दिनो आयोजित शिविर मे स्वास्थ विभाग ने काफी चिंता व्यक्त किया था। यहा पर गुड़ेली और टिमरलगा मे कई परिवार के मुखिया दमा और अस्थमा की बिमारी से ग्रस्त निकले थे। किन्तु उसके बाद भी प्रदूषण का रोकने या इसके रोकथाम करने के लिये कोई पहल नही किया गया।

पीने का पानी तक प्रदूषित?

करोड़ो रूपये का राजस्व देने वाली गुड़ेली और टिमरलगा गांव में अब भू-जल भी व्यापक रूप से प्रदूषित हो गया है। यहा पर भू-जल से निकलने वाली जल पीने के योग्य नही है किन्तु कभी भी लोक स्वास्थ यांत्रिकी सेवा विभाग ने प्रयास नही किया कि गुड़ेली-टिमरलगा के पीने का पानी का टेस्ट किया जाये। गैरसरकारी कुछ लोगो के द्वारा यहा पर पीने का पानी को टेस्ट किया जिसमे यहा पर पानी की मात्रा
400 टीडीएस से अधिक पाई गई है।अर्थात यहा का पानी बिना जलशोधक के पीने के योग्य नही है। किन्तु जिला प्रशासन मजदूरो के भौतिक बुनियादी सुविधाओ वाले बिन्दु पर भी मनमानी कर दे रहा है। शुद्ध हवा और शुद्ध पीने का पानी तक उपलब्ध कराने मे जिला प्रशासन असफल साबित हुआ है।

पर्यावरण विभाग सिर्फ वसूली तक सिमित?

 

सारंगढ़ के गुड़ेली-टिमरलगा क्षेत्र मे पर्यावरण विभाग एनजीटी के द्वारा दिया गया आदेशो का पालन कराने मे असफल साबित हुआ है। यहा पर चूना उद्योग की चिमनी जहरीला हवा उगल रही है किन्तु पर्यावरण विभाग उनको क्लीन चिट दिया हुआ है। वही क्रेशरो मे पानी का छिड़काव बंद है पर्यावरण विभाग को इसकी चिंता नही है। पर्यावरण विभाग की एनओसी लेने के लिये कई क्रेशर संचालक क्रेशरो में लगाया गया वृक्षो की संख्या दर्शाये है किन्तु वास्तविकता यह है कि क्रेशर संचालक नाम मात्र का पौधारोपण करते है। वही खदानो की स्वीकृति मे भी वृक्षो की संख्या का आंकड़ा दिया जाता है किन्तु एक भी खदान के पास वृक्ष नही है। वही नेशनल हाईवे सड़क पर पानी का छिड़काव भी यहा पर बंद है। जिसके कारण से क्रेशर से निकलने वाली बारिक महिन गौण खनिज का डस्ट से प्रदूषण काफी तेजी से
फैल रहा है। चंद हजार रूपये का जुर्माना लगाकर पर्यावरण विभाग अपनी पीठ साल मे एक दो बार खुद की थपथपा लेते है। प्रदूषण को लेकर एनजीटी के द्वारा दिया गया निर्देश का पालने करने मे पर्याचाण विभाग गुडेली-टिमरलगा क्षेत्र में असफल साबित हुआ है।

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